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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

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मूंछोंवाली


यदाकदा उसके मन में यह विचार आया था परन्तु आज पति ने कह दिया तो वह ऊपर चढ़ गई। एक क्षण उसे संकोच और लज्जा हुई परन्तु कुछ समय बाद उसे लगा, वह खुले आकाश में तैर रही है। उसके शरीर में पंख निकल आए हैं, जो बिना हिलाए-डुलाए उड़ने में उसकी सहायता कर रहे हैं।

अब वह आत्मविश्वास के साथ खुले आकाश में उड़ रही थी। अचानक उसे लगा की शरीर की सारी बेडि़यां कट कर अलग हो गईं और वह बादल के समान हल्की हो गई।

सबसे बड़ा आश्चर्य उसे तब हुआ जब उसने अपने मुंह पर हाथ लगाया तो चौंक गई। उसकी नाक के नीचे बड़ी-बड़ी मूंछें निकल आई हैं। आज उसे मूंछों के बाल बुरे नहीं लगे बल्कि वह धीरे-धीरे उन्हें सहलाकर ऐंठने लगी।

 

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