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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

77

वजूद


‘डीयर अरु गोविल, अगले मास से तो तुम अरु चावला बन जाओगी...।’

‘क्यों?’

‘हमारी शादी जो हो जाएगी।’

‘शादी से नाम बदलने का क्या अर्थ है।’

‘यही परम्परा है। शादी के बाद लड़की को अपने पति का गोत्र स्वीकार करना होता है।’

‘मैं इसे ठीक नहीं मानती...।’

‘भला क्यों?’

‘लड़की का अपना परिवार अपना गोत्र होता है। जन्म देने वाले माता-पिता होते हैं। उनको पूर्णतया कैसे विलुप्त किया जा सकता है। मैं तो ताउम्र अरु गोविल ही बनी रहूंगी।’

‘मजाक कर रही हो क्या?’

‘नहीं-नहीं पूरी गंभीरता के साथ सोच-समझकर बोल रही हूं।’

‘अरु जानती हो कितनी कठिनाई से हमारे दोनों परिवार शादी के लिए तैयार हुए हैं। इस बात को मेरा परिवार कभी स्वीकार नहीं करेगा। अब तुम कैसी जिद्द लेकर बैठ गयी...?’

‘ये जिद्द नहीं आकाश, औरत जाति के वजूद का प्रश्न है...’

‘क्या ये तुम्हारा अंतिम फैसला है?’

‘बिल्कुल, मेरा निर्णय ठीक लगे तो आ जाना’, दृढ़ कदमों से वह आगे बढ गयी।

 

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