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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

79

नई सदी


चौराहे पर खड़ी आवारा लड़कियों के समूह को देखकर वह घबरा गया। दबे पांव चलते हुए अब वह पश्चाताप कर रहा था कि क्यों एक सवाल समझने के लिए वह सबसे पीछे रह गया।

सब लड़को के साथ निकल जाओ तो कोई चिंता नहीं होती। वह गर्दन झुकाए चौराहा पार कर लेना चाहता था।

‘क्यों बे चिकने, गर्दन उठाकर चलने में तुझे शर्म आती है...।’ पहला फिकरा उछला।

वह घबरा गया ‘नहीं... जी... जी...।’

‘अबे जीजी किसको बोला।’ आगे बढ़कर एक लड़की ने उसका रास्ता रोक लिया- ‘क्या मैं तेरी माँ का पेट फाड़कर निकली हूं जो मेरे को जीजी बोला...।’

‘नहीं नहीं ... मैंने आपको जीजी नहीं बोला, मैंने तो केवल जी लगाया था, परन्तु घबराहट में जुबान से दो बार निकल गया...।’

‘ऐ दुर्गे, बेचारा घबरा गया है। तेरे लिए ठीक रहेगा, ले जा इसके गले में पट्टा बांधकर...।’

‘ना बाबा ना, सबके सामने हाथ जोड़ता हूं। मुझे जाकर अपनी बहन का खाना भी बनाना है, वह भी मेरी राह देख रही होगी’ गिड़गिड़ाते हुए उसकी नजर दूर खड़ी पुलिस की गाड़ी में बैठी महिला सिपाही पर पड़ी। परन्तु वह जानता था यदि उससे शिकायत की तो पहले वही भूखी भेड़नी की भांति दस सवाल दागेगी।

‘अरी छोड़ दे, थोड़ी देर और खड़ा कर लिया तो यही पैंट में कर देगा।’

‘लो आज तो छोड़ दिया। कल से हर लड़की के सामने सलाम करके निकला कर।’

 

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