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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

6. चालाक ग्राहक


मुल्ला नसीरूद्दीन के पास एक गधा काफी समय से था। वह उससे बिल्कुल तंग आ चुके थे और चाहते थे कि किसी अवस्था में यह बिक जाये, ताकि कोई अच्छा और हृष्ट-पुष्ट गधा खरीद सकूँ।

एक दिन उन्होंने निश्चय कर लिया कि अपने इरादे को पूरा किया जाये। इसलिए वह गधे को लेकर बाजार की ओर निकल गये। बाजार में एक स्थान पर नीलामघर था। वहाँ हर प्रकार का नया और पुराना सामान नीलाम होता था। मुल्ला भी अपने गधे को नीलामघर में ले गये। उनका ख्याल था कि अपने तौर पर बेचने में बहुत समय लग जाता है और पैसे भी अच्छे नहीं मिलते। आखिर नीलामघर के मालिक से बातचीत करके अपना गधा नीलामी पर चढ़ा दिया। उसने बोली लगवाने की व्यवस्था की और इस सम्बन्ध में खूब-खूब प्रशंसा की। मुल्ला ने जो अपने गधे की इतनी प्रशंसा सुनी, तो उनका जी ललचाने लगा। सबसे पहली बोली पाँच दीनार लगी। मुल्ला सोचने लगे कि इतनी खूबियों वाले गधे के केवल पाँच दीनार लग रहे हैं। चलो, खुद ही खरीद लें। इतनी कम कीमत पर ऐसा अच्छा गधा भला कहाँ मिलेगा !

धीरे-धीरे बोली बढ़ने लगी। मुल्ला भी बोली बोलते रहे। नीलामघर का मालिक कहता जा रहा था-'अरे भाईयों! आगे बढ़ो। इतना हृष्ट-पुष्ट, इतना ऊँचा और मजबूत गधा है। इसकी कीमत पचास दीनार से भी अधिक है।

मुल्ला तारीफें सुनते जाते और बोली आगे बढ़ाते जाते। यहाँ तक कि अंत में मुकाबला एक किसान और मुल्ला के बीच रह गया। अंतत: चालीस दीनार पर बोली खत्म हो गई और मुल्ला नसीरूद्दीन के नाम पर बोली छूट गयी। मुल्ला नसीरूद्दीन ने चालीस दीनार जेब से निकाले और नीलाम वाले के हाथ पर रख दिए। उसने अपना कमीशन, जो एक चौथाई तय हुआ था अर्थात् दस दीनार स्वयं रख लिया और तीस दीनार गधे के स्वामी के रूप में गधे सहित मुल्ला को वापस कर दिये।

मुल्ला खुशी-खुशी अपना गधा लेकर वापस चल पड़े। वे मन ही मन में सोच रहे थे कि खुदा ने कितना तरस खाया, जो इतना खूबियों वाला गधा उनके ही पास रहा। अगर निकल जाता, तो फिर दूसरा मिलना कठिन था। रास्ते में उन्होंने यह भी सोचा- 'मैं कितना चालाक और होशियार ग्राहक हूँ, जो माल खरीदने में धोखा नहीं खा सकता।'  

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