नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
जो सुन्दर है वह आकर्षक है, जो आकर्षक है वह भ्रमात्मक है
मेरे अनुराग! आओ, उद्यान की सैर के लिए चलोगे? उन महत्त्वाकांक्षी पुष्पों के समीप से चलो जो हटात् तुम्हारी दृष्टि पर आ पड़ेंगे। जब उनके समीप से निकलो तो दैवयोग से किसी आनन्दमय स्थान पर रुकते जाना–वही स्थान सूर्यास्त के क्षणिक् विस्मय के समान प्रकाशमय तो होगा ही परन्तु नेत्रों के लिए नयनाभिराम होते हुए भ्रमात्मक भी होगा।
क्योंकि प्रेम का उपहार लज्जा है तभी तो वह अपना नाम कभी नहीं बताती। वह तो बस छाया के अन्तराल से निकलकर धूलि के सहारे एक आनन्दमय कम्पन बिछा देती है। उसी लज्जामय उपहार को या तो ले लो अथवा सदैव के लिए खो दो।
किन्तु उपहार जो प्राप्त है–केवल दुर्बल-सा एक अकिंचन पुष्प है अथवा वही एक दीप है, जो अभामय है और जलता ही रहेगा।
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