नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तुम्हारी कलाई पकड़कर पुष्पों की श्रृंखला से उसे बाँध दूँ और तुम्हें अपना बना लूँ
जो कुछ अब शेष है वह थोड़ा ही है। अतिरिक्त इसके जो अवशेष है–वह सब तो एक निश्चित ग्रीष्म ऋतु में बीत गया। किन्तु शेष भी अभी इतना है कि एक गीत बनाकर तुम्हें सुना दूँ, सविनय तुम्हारी कलाई पकड़कर पुष्पों की श्रृंखला से–उसे बाँध दूँ, तुम्हारे कानों में एक गोल, गुलाबी, मोती-सी एक शर्मीली-सी बात कह दूँ और एक सन्ध्या समय खेल के रूप में एक दाँव लगा दूँ और पूर्णतया हार जाऊँ।
मेरी नौका तो एक छोटी-सी अकिंचन वस्तु है जो इतनी भी समर्थ नहीं कि वर्षा में उद्दण्ड लहरों को पार कर सके। किन्तु, फिर भी, यदि तुम सरलता से उस पर पदार्पण करो तो मैं धीरे से तुम्हें (किराये बिना ही) किनारे की साया तक पहुँचा दूँगा, जहाँ छोटी-छोटी लहरों का काला पानी एक स्वप्न में बिखरी निंदिया के समान दीख पड़ता है–और जहाँ बतखों की कूँ-कूँ से सनी बोली झुकी हुई शाखाओं से निकलती है और मध्य-दिवस में विश्राम के लिए बनी हुई छायाओं को दुःखमय बना देती है।
दिवस का अवसान होते-होते जब तुम थक जाओगी, तब मैं किसी नत-मस्तक श्वेत-कमल-पुष्प को तोड़कर तुम्हारे केशों में लगा दूँगा और स्वयं ही तुमसे बिदा माँगकर चला जाऊँगा।
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