नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
शान्त न बैठ सको तो अपने आँसुओं को भी दूसरों से न कहो
मेरे कवि! बसंत के उस अपव्ययी दिवस के प्रकाश में तुम गाओ। उनके प्रति गाओ जो तुम्हारे समीप से बिना कुछ अधिक रूके ही निकल जाते हैं। उनके प्रति गाओ जो हँसते हुए और भागकर तुम्हारे समीप से निकल जाते हैं किन्तु पीछे मुड़कर भी नहीं देखते। उनके प्रति गाओ जो अकारण ही हर्ष के हर्षोन्माद में खिल उठते हैं किन्तु एक ही क्षण में दुःखित हुए बिना ही कुम्हला जाते हैं।
ना तो शान्त ही बैठो और न किसी से कहो ही–अपने गत जीवन के आँसुओं और मुस्कानों को–जो मनकों की माला में पिरोये रखे हैं।
अधखिले पुष्पों से गिरी हुई पँखड़ियों को उठाने के लिए मत रुको। उन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए खोज न करो जो स्वयं तुम्हें नहीं खोजना चाहतीं। और ना ही उस अर्थ को जानने के लिए खोज करो जो सरल नहीं है।
तुम्हारे जीवन में रिक्त स्थान जहाँ-जहाँ भी है उन्हें वहीं रिक्त रहने दो क्योंकि संगीत का उद्रेक तो उन्हीं की गहनता से उदित होगा।
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