| 
			 आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
  | 
        
		  
		  
		  
          
			 
			  | 
     
समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
आत्मनिर्भरता तथा आत्मविश्वास ऐसे दिव्य गुण हैं कि जिनको विकसित कर लेने पर संसार का कोई भी कार्य कठिन नहीं रह जाता। यदि आप जीवन में सफलता, उन्नति, संपन्नता एवं समृद्धि चाहते हैं, तो स्वावलंबी बनिए। अपना जीवन पथ खुद अपने हाथों प्रशस्त कीजिए और उस पर चलिए भी अपने पैरों से। निस्संदेह यदि आप निष्कलंक, निर्भीक और निर्द्वंद्व जीवन के बीच सुख-समृद्धि का सुख लेना चाहते हैं, तो आत्मनिर्भर बनिए अपना काम आप करिए अपनी शक्तियों पर पूरा विश्वास कीजिए और कभी किसी बात के लिए किसी दूसरे पर यथासंभव निर्भर न रहिए। आप अवश्य अपने लक्ष्य में सफल होंगे। मनोवांछित जीवन के अधिकारी बनेंगे। परावलंबी अथवा पराश्रित रहकर आप दुनियां में कुछ न कर सकेंगे। मनुष्य की शोभा आश्रित बनने में नहीं, आश्रय बनने में है। जब संसार में अन्य लोग आगे बढ़ सकते हैं, उन्नति कर सकते हैं, तब क्या कारण है कि उन्हीं की तरह हाथ-पाँव तथा बुद्धि- विवेक पाने पर आप सफल एवं समृद्ध नहीं हो सकते।
सामान्य स्थिति से ऊपर उठने के लिए हर व्यक्ति को प्रचुर मात्रा में स्वतंत्रता विधाता द्वारा प्राप्त है। समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी - ये चार विभूतियाँ ऐसी है, जिनका सदुपयोग, सुनियोजन कर हर व्यक्ति प्रगति की दिशा में आगे बढ़ता रह सकता है, वस्तुत: ये आत्म उन्नति के चार चरण हैं। इन्हें अपनाने के लिए हमें जागरूकता, तत्परता और तन्मयतापूर्वक निरंतर प्रयत्नरत रहना चाहिए।
						
  | 
				|||||

 
		 






			 

