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आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण

उन्नति के तीन गुण-चार चरण

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :36
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9847

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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।

समझदारी

समझदारी मनुष्य का सर्वोपरि गुण है। समझदारी सौभाग्य का प्रवेश द्वार है, तो बेवकूफी दुर्भाग्य का। समझदारी का अर्थ है - तात्कालिक आकर्षण में संयम बरतना, दूर की सोचना, किसी काम की प्रतिक्रिया और परिणति का रूप समझना, स्थिति के अनुकूल निर्णय और प्रयास करना।

समझदारी दैवी अनुदान नहीं है, वरन सतर्क, विवेकशील व्यक्ति निरंतर अभ्यास करके इस गुण को स्थायी बनाते हैं और अपने व्यक्तित्व को निखारते हैं। समझदारी के साथ दूरदर्शिता और विवेकशीलता अनिवार्य रूप से जुड़ी रहती है। समझदार व्यक्ति संयम, श्रम, मनोयोग और अनुशासन को उज्ज्वल भविष्य की नींव मानते हैं। वे तात्कालिक लाभ पर कम ध्यान देते हैं, दूरगामी सत्परिणामों पर विचार करते हैं। इसीलिए समझदार व्यक्ति समुचित सतर्कता, तत्परता और तन्मयता से अनेकानेक उपलब्धियाँ पाते ही चले जाते हैं।

इसके विपरीत समझदारी से काम न लेने वाले व्यक्ति तत्काल के लाभ को देखते हैं और यह सोचते ही नहीं कि भविष्य में इसका क्या परिणाम होगा? जब उनकी जल्दबाजी, अदूरदर्शिता का परिणाम सामने आता है, तो उन्हें दुःख ही दुःख सहन करना पड़ता है। उतावले, अस्थिर, आलसी, प्रमादी समस्त सुविधाएँ होते हुए भी धूर्तों द्वारा ठगे जाते हैं और ठोकरें खाते, निरर्थक श्रम करते, कष्ट सहते, उपहास सहते, तिरस्कार पाते हैं और हर प्रकार से घाटे में रहते हैं।

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