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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

ऑथेलो : उसके प्रेम पर मेरा जीवन न्यौछावर है। मेरे अच्छे इआगो! मैं अपनी डैसडेमोना को तुम्हारे पास छोड़ना चाहता हूँ; मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी पत्नी इसकी देखभाल करे। ज्यों ही अवसर मिले, तुम दोनों को लेकर मेरे पास आ जाना। चलो डैसडेमोना! केवल एक घण्टे का ही समय मेरे पास है, मुझे उसी में तुमसे अपने हृदय की बातें भी कहनी हैं और यात्रा का प्रबंध करते हुए सांसारिक विषयों पर बातें करनी हैं। समय कम है, आओ इसका अधिक से अधिक उपयोग करें!

(ऑथेलो और डैसडेमोना का प्रस्थान)

रोडरिगो : इआगो!

इआगो : ओ महान हृदयवाले मित्र! कहो, क्या हुआ?

रोडरिगो : तुम ही बताओ; अब मैं क्या करूँ?

इआगो : जाओ, और आराम से सोओ!

रोडरिगो : इच्छा तो होती है कि अब जाकर डूब मरूँ!

इआगो : अगर तुम ऐसा करोगे तो क्या कभी मेरे प्रेम के अधिकारी बन सकोगे? तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की आवश्यकता ही क्या है?

रोडरिगो : जब जीवन ही यातना बन जाए, तब जीवित रहना भी क्या मूर्खता नहीं है? और जब मौत ही हकीम बन जाए तो मरने के नुस्खे में बुराई भी क्या है। दर्द तो नहीं रहेगा।

इआगो : धिक्कार है तुम्हें, जो ऐसी क्षुद्र बातें करते हो! 28 वर्ष के लम्बे अनुभव में मैंने जीवन को परखा है और जब से अच्छे और बुरे की मुझे पहचान हुई है, मैंने कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो केवल अपने को ही प्रेम करता हो। एक दुश्चरित्र स्त्री के लिए डूब मरने के स्थान पर मैं तो मनुष्यत्व को तजकर बंदर तक बन जाना अच्छा समझता हूँ।

रोडरिगो : तो मैं करूँ भी तो क्या? मैं अपनी इस आसक्ति पर स्वयं लज्जित हूँ, किन्तु इसका निवारण मेरे वश की बात नहीं है; इतनी अच्छाई मुझमें नहीं है, यह मैं स्वीकार करता हूँ।

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