| ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
 (29)
 सुर नहीं शान्ति आँसू बिखेर लायेंगे,
 मृग नहीं, युद्ध का शमन शेर लायेंगे।
 विनयी न विनय को लगा टेर लायेंगे,
 लायेंगे तो वह दिन दिलेर लायेंगे।
 बोलती बन्द होगी पशु की जब भय से,
 उतरेगी भू पर शान्ति छूट संशय से।
 
 (30)
 वे देश शान्ति के सबसे शत्रु प्रबल हैं,
 जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं,
 है जिनके उदर विशाल, बाँह छोटी हैं,
 भोथरे दाँत, पर जीभ बहुत मोटी है।
 औरों के पाले जो अलज्ज पलते हैं,
 अथवा शेरों पर लदे हुए चलते हैं।
 
 (31)
 सिंहों पर अपना अतुल भार मत डालो,
 हाथियों ! स्वयं अपना तुम बोझ सँभालो।
 यदि लदे फिरे, यों ही, तो पछताओगे,
 शव मात्र आप अपना तुम रह जाओगे।
 यह नहीं मात्र अपकीर्ति, अनय की अति है।
 जानें, कैसे सहती यह दृश्य प्रकृति है !
 
 (32)
 उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
 सुख नहीं, धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है ;
 विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिन्तन है,
 जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है।
 सब से स्वतंत्र यह रस जो अनघ पियेगा,
 पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा।
 			
		  			
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