| ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
 (33)
 जीवन गति है, वह नित अरुद्ध चलता है,
 पहला प्रमाण पावक का, वह जलता है।
 सिखला निरोध-निर्ज्जलन धर्म छलता है,
 जीवन तरंग-गर्जन है, चंचलता है।
 धधको अभंग, पल-विपल अरुद्ध जलो रे !
 धारा रोके यदि राह, विरुद्ध चलो रे !
 
 (34)
 जीवन अपनी ज्वाला से आप ज्वलित है,
 अपनी तरंग से आप समुद्वेलित है।
 तुम वृथा ज्योति के लिए कहाँ जाओगे?
 है जहाँ आग, आलोक वहीं पाओगे ।
 क्या हुआ, पत्र यदि मृदुल सुरम्य कली है?
 सब मृषा, तना तरु का यदि नहीं बली है।
 
 (35)
 धन से मनुष्य का पाप उतर जाता है,
 निर्धन जीवन यदि हुआ, बिखर जाता है।
 कहते हैं जिसको सुयश-कीर्ति, सो क्या है?
 कानों की यदि गुदगुदी नहीं, तो क्या है?
 यश-अयश-चिन्तना भूल स्थान पकड़ो रे !
 यश नहीं, मात्र जीवन के लिए लड़ो रे !
 
 (36)
 कुछ समझ नहीं पड़ता, रहस्य यह क्या है !
 जानें, भारत में बहती कौन हवा है !
 गमलों में हैं जो खड़े, सुरम्य-सुबल हैं,
 मिट्टी पर के ही पेड़ दीन-दुर्बल हैं।
 जब तक है यह वैषम्य समाज सड़ेगा,
 किस तरह एक हो कर यह देश लड़ेगा।
 			
		  			
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