लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3

देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

देवसिंह एक झटके के साथ खाट से उठा। बुरी तरह व्यग्र होकर वह रंग और कूची पर झपटा। फिर उसके हाथ में दबी कूची तेजी से एक आर्ट पेपर पर चलने लगी। उसके हाथ बड़ी तेजी से एक चित्र बनाते जा रहे थे। कुछ देर बाद देवसिंह ने अपना चित्र पूरा बना लिया। अब इस चित्र को देखकर फूलवती और उस खूनी आदमी को भली प्रकार पहचाना जा सकता था। चित्र में उन दोनों की सूरतें बिल्कुल साफ थीं। इस चित्र में उस आदमी द्वारा फूलवती के सीने में मारे गए चाकू को दर्शाया गया था। देवसिंह के हाथों ने चित्र इस तरह बनाया था - मानो उस समय का फोटो उतार लिया गया हो। देवसिंह के चित्र को देखकर कोई भी समझ सकता था कि फूलवती का हत्यारा कौन है।

इस समय देवसिंह की कूची उस चित्र पर वे संवाद लिख रही थी, जो फूलवती और उस हत्यारे आदमी के बीच हुए थे। ज्यों-ज्यों वह चित्र पूरा होता जा रहा था, देवसिंह के दिमाग में चलती आंधी जैसे शान्त होती जा रही थी। सुबह के सूर्य के साथ-साथ देवसिंह का चित्र पूरा हो गया और उसके मस्तिष्क में चलती तीव्र आंधी एकदम शांत हो गई। अभी देवसिंह अपने द्वारा बनाए हुए चित्र को देख ही रहा था कि- --''देव.. देव!'' किसी की आवाज उसके कानों से टकराई-''बेटे देव.. कहां हो क्या कर रहे हो?''

देवसिंह ने पलटकर कमरे के दरवाजे की ओर देखा। वहां उसके अंधे पिता एक लाठी से टटोलकर कमरे में दाखिल होने का प्रयत्न कर रहे थे। देवसिंह झपटकर उनके पास पहुंचा और कन्धे से पकड़कर उन्हें कमरे में लाता हुआ बोला-''एक तस्वीर बना रहा था पिताजी।''

''अरे!'' उसके पिता चौंककर बोले-''तू सुबह-सुबह तस्वीर बनाने लगा बेटे?''

''ये झूठी नहीं पिताजी - मैं.. मैं सच्ची तस्वीर बना रहा था।'' देवसिंह ने कहा-''आज की रात राजमहल में किसी दुष्ट आदमी ने फूलवती नाम की एक औरत की हत्या कर दी है। उस आदमी को मैंने देख लिया पिताजी - जो मैंने देखा था, वो चित्र में बना दिया।''

''नहीं.. नहीं बेटे!'' द्वारकासिंह एकदम तड़पकर बोले- ''ऐसा मत बोल! हम बर्बाद हो जाएंगे - ऐसा मत बोल - हम मर जाएंगे देव बेटे - वो तुझे नहीं छोड़ेंगे - क्या.. क्या तू उस खूनी का नाम भी जानता है?''

''नहीं पिताजी।'' देवसिंह ने कहा- ''लेकिन इस तस्वीर में मैंने उसकी तस्वीर बना दी है - जो भी उसे जानता होगा, उसे पहचान लेगा।''

''नहीं.. नहीं.. बेटे - ऐसा मत बोल।'' द्वारकासिंह एकदम तड़पकर कह उठे- ''अभी तू नहीं जानता कि तेरा दिमाग बड़ा खतरनाक है - ला वो तस्वीर मुझे दे दे - उसमें आग लगा दे - वर्ना वो तस्वीर तेरी मौत बन जाएगी।''

''क्यों पिताजी - क्यों?'' देवसिंह अपने पिताजी की बात न समझकर बोला- ''ऐसी क्या बात है?''

''उस तस्वीर में आग दे दे बेटे - उसे जला दे।'' द्वारकासिंह गिड़गिड़ा रहे थे।

 

० ० ०

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book