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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''यार कार्टून..।'' बागारोफ उसकी पूरी बात सुनने के बाद बोला- ''अपना साला वो चीनी चमगादड़ ठीक ही कहता था। वाकई हम किसी तिलिस्म-विलिस्म में फंस गए है। कसम बावन पत्तों की -- हमने ऐसा अजीब हंस कभी नहीं देखा... और फिर तुम्हारे साथ होने वाली घटनाएं...।''

इसी तरह की बातें करते हुए वे उस हॉल से बाहर आ गए।

अब वे एक बाग में थे। चारों तरफ टहलते हुए वे कोई रास्ता खोजते रहे - मगर उन्हें इस बाग से निकलने का रास्ता नहीं मिला। अंत में शाम के वक्त वे पुन: बाग के कोने में बनी उसी इमारत में दाखिल हो गए।

वे इमारत में विभिन्न स्थानों पर घूमते रहे और अंत में उसी गैलरी में पहुंच गए - जिसके दोनों तरफ कोठरियां बनी हुई थीं और उन्हीं में से एक अजीब कोठरी में हुचांग बंद था। जिस वक्त वे पहुंचे, उस कोठरी का दरवाजा खुला हुआ था और दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार से सटे हुए चबूतरे पर हुचांग लेटा था।

''अबे....!'' उसे देखते ही बागारोफ बोला- ''प्यारे चीनी चमगादड़ वहां आराम फरमा रहे हो?''

उन दोनों को गैलरी में देखकर अजीब मुसीबत में फंसे हुचांग के जिस्म में जान-सी आ गई और बोला- ''मेरी मदद करो चचा, मैं इस अजीबो-गरीब कोठरी में कैद हो गया हूं। निकलने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही है।''

' अबे क्या बकता है?'' उसकी बात सुनकर बागारोफ एकदम आंख निकालकर गुर्राया- ''हमे अंधा समझता है मुर्गी के -- झूठ भी बोलता है तो ऐसा कि पकड़ा जाए। साला कहता है - कैद हो गया है। अबे उल्लू की दुम फाख्ता, हमारे सामने चबूतरे पर पैर पसारे लेटा है, कोठरी का दरवाजा खुला है और तू कहता है कि मैं कैद हूं। अबे तुझे किसी ने बांध नहीं रखा, दरवाजा खोलकर बाहर क्यों नहीं आता?'' - 'चचा, यकीन करो। मैं वाकई कैद में हूं।'' हुचांग रो देने वाले स्वर में बोला।

“अबे मजाक करना है, कुत्ते के बच्चे!'' कहता हुआ बागारोफ एकदम कोठरी में दाखिल हो गया- “साले, चचा से मजाक करता है।'' यह कहता हुआ वह हुचांग के बिल्कुल पास पहुंच गया।

उसी वक्त हुचांग के दिमाग में एक बात आ गई, वह बोला - बैठो चचा, आराम से मेरे पास बैठ जाओ।'' वह बागारोफ को उसी चबूतरे पर बैठने के लिए जगह देता हुआ बोला- ''आपको बताता हूं कि इस कोठरी में मैं किस तरह कैद हूं।''

'बता चोट्टी के।'' कहने के साथ ही बागारोफ धम्म-से उसके बराबर में ही चबूतरे पर बैठ गया--- ''लेकिन साले अगर तूने हमें अपनी साली समझकर मजाक किया तो कसम लालटेन की, हम तेरा स्टीमर बनाकर समुद्र में लुढ़का देंगे।''

टुम्बकटू गैलरी में खड़ा हुआ उनकी हरकतें देख रहा था।

'सुनो चचा।'' हुचांग बागारोफ से इस तरह बोला --- मानो वह उसे कोई बहुत गहरी बात समझाने जा रहा हो- ''ये जो कोठरी है...।'' और अपने आगे के शब्द बोलने की जगह हचांग ने बेहद फुर्ती के साथ एक जम्प ली।

'अबे ..अबे ...!''

बागारोफ चिल्लाता ही रह गया... जबकि हुचांग खुले हुए दरवाजे से निकलकर सीधा गैलरी की तरफ बढ़ा। अभी वह गैलरी के फर्श पर गिरने ही वाला था कि टुम्बकटू ने उसे अपनी पतली-पतली बांहों में लपक लिया।

उधर कोठरी का दरवाजा एक झटके से बंद हो गया।

'ये क्या करते हो मियां चटनी चमगादड़?'' टुम्बकटू हुचांग को पैरों के सहारे सीधा खड़ा करता हुआ बोला-- ''क्या मामला है, तुम्हारे निकलते ही दरवाजा बंद ! अपने बड़े मियां तो अंदर ही रह गए -- जल्दी बोलो, ये क्या बखेड़ा है?''

'अभी समझ में आ जाएगा।'' हुचांग अपनी उखड़ी हुई सांस पर नियंत्रण पाकर बोला - 'असल में यह दरवाजा मेरे बाहर आने से बंद नहीं हुआ है, बल्कि इसलिए हुआ है, क्योंकि चचा ने भी मेरे पीछे-पीछे इस कोठरी से बाहर आना चाहा होगा।''

''इसका क्या मतलब मियां खां?'' टुम्बकटू बोला- ''साले तू बाहर आ गया तो दरवाजा बंद हुआ नहीं और तेरे पीछे मियां ने बाहर आना चाहा तो दरवाजा बंद हो गया! या तो ठीक-ठीक बता कि ये सब माजरा क्या है, वर्ना एक चपत मारकर भेजा बाहर कर दूंगा।''

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