ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
|
0 |
चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
छठा बयान
दूसरे भाग के नवें बयान में आपने पिशाचनाथ, बख्तावरसिंह, विक्रमसिंह, गुलबदन इत्यादि का हाल जाना था। मुख्तसर में वह हाल जानने के लिए तो आपको एक बार सरसरी तौर पर वह बयान पढ़ना ही होगा, परन्तु यहां हम इतना जरूर लिखे देते हैं, जिससे उन पाठकों को उस बयान की घटना याद आ जाए जिन्होंने उसे पढ़ रखा है। उस बयान में बख्तावरसिंह और विक्रमसिंह के बीच यह भेद खुलता है कि राजा उमादत्त का दारोगा और साला मेघराज उमादत्त का वफादार नहीं है और वह उमादत्त की जगह खुद राजा बनना चाहता है, किन्तु इस जरूरी काम को पूरा करने में एक कलमदान अड़चन बन रहा है, जो बख्तावरसिंह की लड़की चंद्रप्रभा और दामाद रामरतन की जानकारी में है और इन दोनों को मेघराज ने अपनी कैद में डाल रखा है। मगर हजारों उद्योगों के बाद भी उनमें से कोई दारोगा को कलमदान का पता नहीं देता।
पिशाचनाथ और मेघराज मिलकर एक ऐसी तरकीब सोचते हैं, जिससे धोखा खाकर वे कलमदान का पता उन्हें बता दें।
और - यह भेद यहां विक्रमसिंह और बख्तावरसिंह की बातों में खुल जाता है। ये दोनों ही राजा उमादत्त के ऐयार हैं। विक्रमसिंह तो इस वक्त भी उमादत्त का ऐयार है, किंतु बख्तावरसिंह उनका ऐसा ऐयार है, जिसे गद्दारी के जुर्म में उमादत्त राज्य-निकाले की सजा दे चुके हैं। यहां इन दोनों की बातों से यह भेद भी साफ होता है कि मेघराज ने ही बड़ी गहरी धोखाधड़ी करके उमादत्त को बख्तावरसिंह के खिलाफ भड़काया और असली गुनहगार वही है। विक्रम बख्तावर को बताता है कि उमादत्त के दिल में तो अब भी तुम्हारे लिए मुहब्बत है।
अत: बख्तावरसिंह और विक्रमसिंह मिलकर यह निश्चय करते हैं कि वे दोनों मिलकर उमादत्त के हक में और दुष्ट मेघराज के विपक्ष में काम करेंगे। तभी वहां पिशाचनाथ आ जाता है और इन दोनों की दोस्ती तुड़वाना चाहता है, किंतु बख्तावरसिंह उल्टा उसे ही अपने चक्कर में डालकर पिशाचनाथ से वह तरकीब पूछ लेता है, जो उसने चंद्रप्रभा और रामरतन के बारे में मेघराज को बताई थी।
इसके बाद बख्तावरसिंह पिशाचनाथ को गिरफ्तार कर लेता है और विक्रम के साथ मेघराज को धोखा देने की सोचता है।
बस - यहीं वह बयान बंद हो गया था और उस बयान से आगे आज हम लिखने बैठ रहे हैं।
वो देखो - वे मेघराज के घर का एक सजा-सजाया कमरा है। उसकी छत में कई कन्दीलें लटक रही हैं, जिन पर मोमबत्ती जल रही हैं, कमरे में एक तरफ पलंग पड़ा है और उसी पलंग पर हम इस वक्त दो आदमियों को बैठा देख रहे हैं।
हमारे पाठक इन दोनों ही आदमियों को बखूबी पहचानते हैं।
ये दोनों और कोई नहीं मेघराज और पिशाचनाथ ही हैं।
कदाचित आप इस वक्त पिशाचनाथ को यहां देखकर चौंके हैं, क्योंकि इसे तो बख्तावरसिंह ने गिरफ्तार कर लिया है। मगर घबराइए नहीं, हम किसी तरह की गलती नहीं कर रहे हैं। आइए -- आगे बढ़कर इनकी बातें सुनें। हो सकता है कोई भेद की बात करते हों।
''वाह पिशाचनाथ वाह.. .तुमने भी खूब चाल चली!'' मेघराज उसकी किसी बात पर जोर से हंसता हुआ बोला- ''जब तुमने हमसे विक्रमसिंह के लिए ऐसे मजमून का खत लिखवाया, जिससे वह हमारा साथी लगे तो हम समझे ही नहीं कि तुम क्या करना चाहते हो? मगर अब समझ में आया। वाकई अगर विक्रमसिंह और बख्तावरसिंह मिलकर हमारे खिलाफ खड़े हो जाते तो हमारे रास्ते में बड़ी अड़चनें खड़ी कर सकते थे - लेकिन तुमने ऐसी चाल चली कि वे दोनों हमारे फंदे में फंसना ही चाह्ते हैं।''
''हमारे दिमाग को कुछ इनाम दो.. दारोगा साहब...।'' पिशाचनाथ हंसता हुआ बोला- ''अभी तुमने हमारे कमाल देखे ही क्या हैं, अभी तो तुम्हारी-हमारी दोस्ती हुई है। आगे देखना कि हम ऐयारी के कैसे-कैसे कमाल दिखाते हैं।''
''लेकिन तुम वहां खुद क्यों नहीं गए पिशाच....?''
अभी मेघराज की यह बात पूरी भी न हुई थी कि कमरे में एक नकाबपोश दाखिल हुआ। उसके अंदाज से पता लगता था कि वह बेहद जल्दी में और घबराया हुआ है। सामने आते ही उसने अदब से पिशाचनाथ को सलाम किया।
'क्या बात है नंबर आठ - तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?'' पिशाचनाथ ने सवाल किया।
|