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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

नौवाँ बयान

 

हम जानते हैं कि संतति के इस कथानक में पिशाचनाथ एक ऐसा पात्र बन गया है - जिसे पाठक अभी तक बखूबी नहीं समझ पाए हैं। अब क्योंकि हम अपने पाठकों को ज्यादा उलझन में नहीं रहने देना चाहते, इसलिए ये नौंवा बयान भी हमने इसी दिलचस्प पात्र से संबंधित लिखने का निर्णय किया है। मगर यह बयान लिखने से पहले आपको यह भी बता देना बहुत जरूरी लगता है कि इस नये बयान में हम दूसरे भाग के चौथे और पांचवें बयान के कथानक से आगे का हाल लिखने जा रहे हैं? आपको अच्छी तरह से याद होगा कि पिशाचनाथ ने इन बयानों में अर्जुनसिंह, नानक, प्रगति व उमादत्त से संबंधित कार्यवाहियां की थीं। अर्जुनसिंह को रक्तकथा लाने का लालच देकर पिशाचनाथ उलटे उनकी बेटी प्रगति को ले गया। रास्ते में प्रगति को उसने अपने आदमियों को सौंप दिया और उमादत्त को नकली प्रगति दी.. जो वास्तव में पिशाचनाथ की लकड़ी जमना थी। जमना को प्रगति बनाकर उसने उमादत्त से दो हजार अशर्फियां ठगीं और पांच हजार अशर्फियों में अर्जुनसिंह का सौदा करके वहां से चला। अर्जुनसिंह को क्योंकि पिशाचनाथ की नीयत पर शक था, इसलिए उन्होंने अपने खास ऐयार नानक को उसके पीछे लगा दिया था। किंतु पिशाचनाथ ने नानक को भी गिरफ्तार कर लिया और अपने एक बारूसिंह नामक ऐयार को नानक बनाकर अर्जुनसिंह के पास भेज दिया - फिर उसने एक षडयंत्र रचकर अर्जुनसिंह को बड़ा बुरा धोखा दिया। इस धोखे के अंतर्गत उसने अपने ही ऐयार बारूसिंह को झूठा और खुद को सच्चा साबित करके अर्जुनसिंह के दिमाग में यह बात बैठा दी कि नानक और प्रगति को दलीपसिंह के ऐयारों ने गिरफ्तार कर लिया है। एक बार अर्जुनसिंह पिशाचनाथ के धोखे में आ गए और उसके साथ प्रगति और नानक को छुड़ाने के लिए दलीपसिंह के महल में जाने के लिए तैयार हो गए। अर्जुनसिंह बारूसिंह को तहखाने में डालने गए और पिशाच बालादवी के बहाने जंगल में आकर अपने शागिर्द से मिला। उसने अपने शागिर्द को हुक्म दिया कि जैसे ही वे लोग यहां से जाएं, वह कैदखाने से बारूसिंह को निकाल ले। उसके बाद जब वह थोड़ा-सा आगे चला तो अपनी राह में एक टमाटर देखकर वह चौंक पड़ा। जंगल में गूंजती हुई उसके कानों में यह आवाज भी पड़ीथी - हमने इस तरह फूटते हुए बहुत-से टमाटर देखे हैं, पिशाचनाथ।' इतना आप पढ़ चुके हैं और अब आगे का हाल यूं है।

पिशाचनाथ को ऐसा महसूस हो रहा था.. मानो जंगल में गूंजने वाली यह भयानक हंसी की आवाज उसके कानों के पर्दे फाड़ डालेगी। उसका सारा जिस्म पसीने-पसीने हो उठा था। दिल कांप रहा था। अचानक जैसे वह पागल होकर चीखा-

''कौन है ये हंसने वाला -- अगर मर्द का बच्चा है तो सामने आये।”

''बहुत जल्द ही सामने आऊंगा, पिशाचनाथ।'' हंसने वाले की आवाज जंगल में गूंज उठी-- ''मैं जानता हूं कि तू ज्यादा तरद्दुद में इसलिए है कि तूने तो मुझे राक्षसनाथ के तिलिस्म में डाल दिया था - फिर भला मैं कैसे तेरे सामने आ गया! तुझे इस बात में भी शक है कि मैं शैतानसिंह हूं। लेकिन सच मान, वही शैतानसिंह हूं जिसे तूने अपनी जान में तिलिस्म में डाल दिया था। तू मुझे बहकाकर उस करामाती बंदर के पास ले गया। वहां मुझे धोखा देकर तूने तिलिस्म में डाल दिया। बोल क्या मैं गलत कहता हूं?''

''यह गलत है।'' पिशाचनाथ चीखा- ''बिल्कुल गलत है। मैंने कभी तुम्हें तिलिस्म में नहीं डाला।''

जवाब में वह आवाज बहुत जोर से हंस पड़ी, फिर बोली- ''मैं जानता हूं पिशाचनाथ कि तू खुद को बहुत चालाक, होशियार और दबंग ऐयार समझता है, लेकिन तेरी होशियारी मेरे सामने बिल्कुल नहीं चलेगी। तू मुझे तिलिस्म में डालने की घटना से इसलिए मुकर रहा है, क्योंकि अभी तक तुझे ये शक है कि मैं शैतानसिंह नहीं बल्कि कोई और हूं और इस तरीके से मैं तुझसे इस बात की हामी भरवाना चाहता हूं कि तूने शैतानसिंह को तिलिस्म में डाला है। तुझे यही वहम है - इसलिए तू कहकर नहीं देता कि तूने मुझे तिलिस्म में डाला था।''

''अगर तुम वाकई शैतानसिंह हो तो सामने आकर बात क्यों नहीं करते?'' पिशाचनाथ चीखा- ''शैतानसिंह मेरे सामने आकर मुझसे बात करता था - छुपकर नहीं। अगर तुम मेरे सामने आओ तो मैं तुम्हारे कई सवालों का जवाब दे सकता हूं।''

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