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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''आप मुझे बताइए कि वह पापी कौन है।'' बलदेवसिंह बोला- ''उस रात हकीकत में क्या हुआ था? मुझे सब कुछ बताइए और आपकी बातें सुनने के बाद मुझे यह यकीन हो गया कि अगर मैं आपकी बात न सुनता तो वाकई एक ऐसा पाप कर बैठता.. जिसके बाद मैं दुनिया में जीने के काबिल न रहता तो मैं आपसे वादा करता हूं कि अलफांसे को आपको सौंप दूंगा।''

''तो सुनो।'' गुरुवचनसिंह बोले-- ''याद करो, उस रात की वारदातों को। उस रात पिशाचनाथ और शैतानसिंह के बीच में रक्तकथा के चक्कर में बड़ी गहरी ऐयारी चल रही थी। (यह कहानी विस्तृत रूप से जानने के लिए पढ़ें.. तीसरे भाग का तेरहवाँ और चौदहवाँ बयान तथा चौथे भाग का पहला, चौथा, छठा, सातवाँ और आठवाँ बयान) उस वक्त रक्तकथा पिशाचनाथ के पास थी। वह रक्तकथा दलीपसिंह ने उसे मुनासिब जगह पर रखने के लिए सौंपी थी। यह भेद बेगम बेनजूर के ऐयार शैतानसिंह को पता लग गया। वह पिशाचनाथ के घर से रक्तकथा हासिल करने की नई-नई तरकीबें सोचने लगा। कभी उसने अपने लड़के बिहारीसिंह को पिशाचनाध की लड़की जमना के पीछे लगाया।

कभी अपनी पत्नी नसीमबानो को नकली राम-कली बनाकर पिशाचनाथ के घर में रखा। यह भेद पिशाचनाथ पर खुल गया था ...उसने शैतानसिंह को धोखा देने के लिए तुम्हारी जानकारी में रामकली बनी नसीमबानो को मठ में बंद कर दिया और असली रामकली को घर में रखा। एक नकाबपोश के रूप में पिशाचनाथ ने उस रात तुम्हें अपने घर पर रामकली की हिफाजत के लिए नियुक्त कर दिवा। तुमने उस रात बहुत-से काम किए, जैसे शैतानसिंह की कैद से पिशाचनाथ और उसकी पत्नी रामकली को निकालकर लाना। उन दोनों को लेकर तुम मठ पर पहुंचे थे! उस वक्त तुम लोग मठ के नीचे बातें कर रहे थे. जब एकाएक वहां शैतानसिंह का लड़का बिहारीसिंह आया और तुम वहां शैतानसिंह द्वारा घेर लिए गए। किन्तु पिशाचनाथ तुम सबको लेकर एक गुप्त रास्ते से निकल गया। तुम्हें याद होगा कि यह गुप्त रास्ता मठ से लेकर सीधा तुम्हारे घर निकला था।''

'हां.. मुझे याद है।'' बलदेवसिंह ने कहा।

''जिस वक्त तुम अपने घर पहुंचे तो तुम्हारे पिता -- यानी शामासिंह अपने दोस्त बागीसिंह के पिता गिरधारीसिंह के घर पर शतरंज खेल रहे थे -- यह बात तुम लोगों को तुम्हारी मां तारा ने बताई थी। उस वक्त तुम्हारी बैठक में यही बागीसिंह... जिसे इस वक्त तुमने कैद कर रखा है, बैठा था और पिशाचनाथ के हुक्म पर यह अपने घर से गिरधारीसिंह और शामासिंह को बुलाकर लाया। उनके आने पर बिहारीसिंह को होश में लाया गया और उससे बातें की गईं। उसने अपनी बातों से सिद्ध कर दिया कि वह जमना की मुहब्बत में आकर पिशाचनाथ की मदद कर रहा है। इसके बाद पिशाचनाथ शैतानसिंह की कैद से अपनी लड़की जमना को निकालने अकेला ही गया। अपनी ऐयारी के जाल में फंसाकर उसने शैतानसिंह को बड़ा जबरदस्त धोखा दिया तथा बेगम बेनजूर के कब्जे से जमना को निकालकर पुनः तुम्हारे घर आया। उस वक्त तुम लोगों के बीच क्या बातें हुईं..वह बातें तुम्हें, यहां बताने से खास फायदा नहीं है, अंत मैं सब बातों के बाद उसने तुम्हें और तुम्हारे पिता को बेगम बेनजूर के महल की निगरानी के लिए भेज दिया। गिरधारीसिंह और उसका लड़का बागीसिंह अपने घर चले गए। पिशाचनाथ रामकली, जमना और बिहारीसिंह को लेकर अपने गंगा किनारे वाले मकान में जा पहुंचा। इन तीनों को वहीं छोड़कर वह दलीपसिंह के पास गया।''

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