ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''ये सब बातें तो खैर मुझे याद है. ..किन्तु यहां उनको बयान करने से क्या लाभ?''
''लाभ यही है कि तुम यह जान लो कि मुझे उन सब बातों की मुनासिब जानकारी है। ''
''लेकिन आपको इतनी सब बातें पता किस तरह हैं?'' बलदेवसिंह ने पूछा?
गुरुवचनसिंह मुस्कराए और बोले-- ''नाम तो इस वक्त तुम्हें नहीं बताऊंगा, किंतु हां इतना जरूर बता सकता हूं कि जिस वक्त पिशाचनाथ दलीपसिंह के महल से निकला तो उसके पीछे एक रहस्यमय व्यक्ति था जो उसकी एक-एक हरकत नोट कर रहा था। (चौथे भाग के सातवें बयान की अन्तिम लाइनें पढ़ें) ये सारी बातें मुझे उसी आदमी ने बताईं हैं। यह समझो कि वह मेरा खास आदमी है...उसी ने यह भेद बताया कि तुम्हारी मां के साथ व्यभिचार करने बाला दुष्ट ऐयार कौन था।''
'अब आप मुझे उस हरामजादे का नाम बता दीजिए।'' बलदेवसिंह बेचैन होकर बोला।
'सुनो।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''कान लगाकर ध्यान से सुनो, कदाचित तुम्हें यकीन नहीं आएगा।''
''आप बताइए तो सही।''
'पिशाचनाथ!''
''पिशाच चाचा।'' बलदेवसिंह उछल पड़ा- ''नहीं...यह नहीं हो सकता.. नामुमकिन।''
''हम पहले ही जानते थे कि तुम्हें यकीन नहीं होगा।'' गुरुवचनसिंह आराम से बोले--- ''लेकिन थोड़ी ही देर में तुम्हें यकीन करना होगा कि हम एक-एक लफ्ज सही कह रहे हैं। पिशाचनाथ को ही तुमने उस वक्त गिरधारी के भेस में तारा के पास देखा था।''
'मैं नहीं मान सकता ..यह बिल्कुल नामुमकिन है...एकदम गलत।'' बलदेवसिंह अविश्वास-भरे स्वर में कह रहा था।
''मैं अच्छी तरह जानता था कि तुम उस कड़वी सच्चाई पर आसानी से यकीन नहीं करोगे।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''लेकिन तुमसे पहले ही कह चुका हूं कि मैं इन्द्रदेव की कसम गलत नहीं खा सकता। अब आगे जो बातें मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं अगर उन्हें गौर से सुनकर विचार करोगे तो तुम भी जान जाओगे कि मैं सही कह रहा हूं। अभी से तुम इतना गुस्सा मत करो, आराम से मेरी बात सुनो।''
'कहिए!'' बलदेवसिंह के अल्फाज से अभी तक उत्तेजना टपक रही थी।
'असल पूछो तो पिशाचनाथ ने तारा के साथ व्यभिचार भी नहीं किया था।''
''आप क्या कह रहे हैं?'' एकदम झुंझलाकर बलदेवसिंह बोला- ''मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप बड़े हैं.. मैं आपका लिहाज करता हूं! अगर कोई और इतनी बात कहता तो अब तक वह ठंडा हो चुका होता।''
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