ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
|
0 |
चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''हम ठीक कह रहे हैं बेटे.. जब इस तरह के दुष्कर्म में स्त्री-पुरुष की सहमति हो तो उनके बीच में हुए किसी भी काम को व्यभिचार कहकर अकेले पुरुष पर नहीं थोपा जा सकता। पति की पत्नी के और पत्नी का पति के अतिरिक्त किसी अन्य से शारीरिक सम्बन्ध है तो व्यभिचार है। किन्तु उसमें दोनों ही बराबर के मुजरिम होते हैं।''
बलदेवसिंह की आंखें सुर्ख हो उठीं, वह गुर्राया-- ''आप क्या कहना चाहते हैं?''
''यही कि तारा व पिशाचनाथ में दोनों की सहमति से मुहब्बत और शारीरिक सम्बन्ध था।''
''गुरुजी!'' चीख पड़ा बलदेवसिंह- ''जुबान सम्भालकर बात करिए।'' कहते हुए गुस्से में उसने एक झटके से तलवार खींच ली- ''आप जो भी कह रहे हैं, वह कहने से पहले यह सोच लें कि तारा मेरी मां थी - और आप एक बेटे के सामने उसकी मां को बदचलन कह रहे हैं। उसका अंजाम आपकी मौत भी हो सकता है।''
''अगर तुम सच्चाई नहीं सुन सकते तो उड़ा दो मेरी गर्दन।''
''ये हकीकत नहीं है।'' बलदेवसिंह पागलों की भांति चीख पड़ा।
''ये हकीकत है।'' गुरुवचनसिंह भी चीख पड़े- ''तुम्हें सोचना चाहिए कि गुरुओं के गुरु, गुरुवचनसिंह किसी औरत के पाक दामन पर बदचलनी का गलत नापाक धब्बा नहीं लगा सकते। जो हम कह रहे हैं.. उसे शांत दिमाग से सुनो और सोचो। तलवार म्यान में रख लो। हकीकत सुनने की ताकत अपने अन्दर पैदा करो... आगे सुनोगे तो तुम्हें यकीन करना ही होगा।''
लाल-लाल आंखों से बलदेवसिंह गुरुवचनसिंह को घूरता रहा।
गुरुवचनसिंह बोले- ''होश में आओ बेटे.. सुकून से हमारी बात सुनो।''
गुस्से के सबब से बलदेवसिंह के नथुने फड़क रहे थे। सारा जिस्म कांप रहा था। उंगलियों की पकड़ तलवार की मूंठ पर बेहद सख्त थी। लाल धधकती आंखों से वह गुरुवचनसिंह को घूर रहा था। बोला- ''खैर.. आगे कहिए।''
'पहले यह तलवार म्यान में रखकर आराम से मेरी बात सुनो।“
''जब आपने इन्द्रदेव की कसम खाई है तो सुनूंगा ही।'' वह तलवार पुन: म्यान में रखता हुआ बोला-- ''लेकिन एक बात याद रखिएगा.... अगर आपका एक भी लफ्ज गलत साबित हो गया तो लिहाज, शर्म और इज्जत की सारी सीमाओं को तोड़कर मैं आपको नहीं छोड़ूंगा।''
''यकीनन।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''इन्द्रदेव की कसम के बाद झूठ बोलने वाले की सजा, सजाए-मौत है।''
''तो फिर कहिए... आप क्या कहना चाहते हैं?'' मैं सबकुछ सुनने के लिए तैयार हूं।''
|