ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''कैसे...?'' हल्के-से चौंककर गौरवसिंह ने पूछा- ''कृपा करके मुझे सारा हाल मुख्तसर में बताने का कष्ट करें।'' और... !' जवाब में - गुरुवचनसिंह ने अलफांसे से संबंधित सारा हाल बयान कर दिया। वह सारा हाल पाठक पिछले कथानक में कहां-कहां पढ़ सकते हैं - यह बात हमने इसी भाग में पीछे लिख दी है...। हां - पाठकों को यहां यह बता देना हमारा फर्ज है कि गुरुवचनसिंह ने अलफांसे के बारे में वहां तक बता दिया - जहां तक हम चौथे भाग के आखिरी बयान में लिख आए हैं।
पाठकों को जरूर याद होगा कि अंत में गुरुवचनसिंह को शेरसिंह (अलफांसे) का खत मिला था, जिसका सारांश ये था कि उसे (शेरसिंह को) गुरुवचनसिंह की शक्ल का एक और आदमी मिला - जिसने खुद को तो असली - और उसे नकली गुरुवचनसिंह बताया। उसमें शेरसिंह ने लिखा था कि वह अच्छी तरह जानता है कि नया मिलने वाला ये गुरुवचनसिंह नकली है - और मुझे फंसाना चाहता है...। खत के अंत में शेरसिंह ने लिखा था कि वह अपने ऐयार शत्रुओं से बदला लेकर ही वापिस आएगा।
बस -- यही चौथे भाग का अंत था।
इसके बाद का हाल गुरवचनसिंह जो कुछ भी कह रहे हैं, वह हमें ध्यान से सुनना पड़ेगा, क्योंकि पाठकों ने भी अभी तक वह हाल नहीं पढ़ा है। जो हाल पाठक चौथे भाग में पढ़ आए हैं, वह सारा गौरवसिंह को बताने के बाद गुरुवचनसिंह कह रहे हैं- ''शेरसिंह का वह खत पढ़ने के बाद मेरे दिल को थोड़ी-सी शांति मिली और हाथ बढ़ाकर अपने चेहरे पर उभर आने वाला पसीना पोंछा।''
''ये कब की बात है गुरुजी...?'' गौरवसिंह ने पूछा।
''कल रात ही की तो बात है...!'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''कल ही उनकी याद्दाश्त लौटी, फिर इस तरह से वे गायब हो गए। पहले तो उनके गायब होने से मैं डर गया था, लेकिन जब खत्म पढ़ा तो मन को सुकून मिला। मैंने सोचा कि जब तक वह अलफांसे था, तब तक तो बलदेवसिंह जैसे छोटे ऐयार भी उसे चकमा दे देते थे, लेकिन अब वे शेरसिंह बन चुके हैं। अब तो वे बड़े-बड़े ऐयारों को पानी पिलाकर ही लौटेंगे, मगर अब मुझे फिक्र होने लगी है क्योंकि अभी तक उनके बारे में कोई भी खबर हमें नहीं मिली है।''
''कहीं ऐसा तो नहीं कि वे दलीपसिंह के किसी, जाल में फंस गए हों?'' गौरवसिंह ने कहा।
बड़े गहरे ढंग से मुस्कराए गुरुवचनसिंह, फिर बोले-- ''अब उनके बारे में इतनी चिंता करने की जरूरत नहीं है बेटे। तुम तो उनके पिछले जन्म की सारी कहानी जानते हो, उन जैसा ऐयार इस जमाने में कहां? अब हमें उनकी फिक्र नहीं करनी चाहिए। मुझे इतना तक भी यकीन है कि अगर वे इत्तफाक से दलीपसिंह के किसी जाल में फंस भी गए तो बिना किसी की मदद से निकल भी आएंगे।''
''क्या आपने पिताजी को बता दिया कि चाचा (शेरसिंह) भी मिल गए हैं?'' गौरवसिंह ने पूछा।
''अभी नहीं - वक्त आने पर उन्हें आमने-सामने खड़ा कर देंगे।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''अब हमारा आधे से ज्यादा काम सफल हो चुका है। तिलिस्म शेरसिंह और देवसिंह ही तोड़ सकते हैं, सो हमें, मिल चुके हैं - अब रक्तकथा और मुकरंद हासिल करना बाकी है।''
''क्या ये दोनों चीजें हम लोग अभी तक हासिल नहीं कर पाए हैं?'' गौरवसिंह ने सवाल किया।
इससे पहले कि गुरुवचनसिंह उसकी बात का जवाब दे पाते, महाकाल एकदम चौंककर बोल पड़ा- ''महाराज शेरसिंह आ रहे हैं।'' दोनों ने नजर उठाकर देखा तो उन्हें अलफांसे नजर आया। वह उसी गुफा वाले रास्ते से तेज कदमों के साथ मैदान को पार करता हुआ इन्हीं की ओर आ रहा था।
तीनों अपनी जगह से खड़े हो गए।
''क्या ये ही मेरे चाचा शेरसिंह हैं गुरुजी?'' गौरवसिंह नें पूछा।
''हां बेटे, यही हैं।'' गुरुवचनसिंह का चेहरा खुशी से चमक रहा था- ''देखो कैसी मस्तानी चाल है - ठीक पिछले जन्म के शेरसिंह की तरह...! उनकी चाल से ही दबंग ऐयारी झलकती है,.! मैं कहता नहीं था कि अब इस शेर को कोई नहीं रोक सकेगा।''
गौरवसिंह एकटक बड़ी मुहब्बत के साथ अलफांसे को देख रहा था। उसके पास पहुंचते ही महाकाल और गुरुवचनसिंह ने सम्मान के साथ सलाम किया और गौरवसिंह ने बड़े आदर के साथ झुककर उसके चरणस्पर्श कर लिए - और फिर अलफासे एकदम चौंककर - पीछे की ओर हटता हुआ बोला- ''अरे-अरे ये क्या करते हो?''
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