ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5 देवकांता संतति भाग 5वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
'हम अच्छी तरह से जानते हैं कि आपकी और सिंगही की दुश्मनी है और यह शायद आपको भी न पता हो कि इस बार वह आपको और पिछले जन्म के देवसिंह यानी इस जन्म के विजय को मार डालना चाहता है। बेशक, रमणी घाटी हमारी है। वहां रहने वाले कुछ लोग भी हमारे हैं - लेकिन वे नहीं जानते कि उनके बीच में उनका गुरु, गुरुवचनसिंह जो बना बैठा है, वह हकीकत में गुरुवचनसिंह नहीं सिंगही है।' वह बोली।
'तो फिर असली गुरुवचनसिंह कहां हैं?' उस वक्त मुझे उसकी बातों पर कुछ यकीन-सा आता जा रहा था।
'वे तो उस जालिम की कैद में हैं।' उसने मुझे बताया-- ' आज से कोई हफ्ते-भर पहले धोखे से सिंगही ने गुरुवचनसिंह को घेर लिया और उन्हें कैद कर लिया। वह तो इत्तफाक ही समझो कि उसकी वे सब हरकतें एक जगह पर छुपी हुई मैं देख रही थी। उसने भी यह देख लिया था कि मैंने उसे देख लिया है। मैं अपनी जान बचाने के लिए भागी और बड़ी मुश्किल से उससे बचने में कामयाब हो पाई।'
'लेकिन तुमने पिछले हफ्ते में उसका कोई इन्तजाम क्यों नहीं किया?' मैंने सवाल किया।
'मैं अकेली लड़की भला उस दरिन्दे का क्या इंतजाम करती?' शीला ने कहा- 'हां, इतना जरूर किया है जबसे मैंने यह देखा कि रमणी घाटी के बाहर अपना जो भी आदमी मिलता है, उसी को यह हकीकत बताती हूं और उससे रमणी घाटी में न जाने के लिए कहती हूं। इस तरह से अब हम यह भेद जानने वाले सात इन्सान हो गए हैं और हमारी योजना है कि धीरे-धीरे अपने सभी साथियों पर यह भेद खोल दूं और फिर एक दिन हम सब मिलकर गुरुवचनसिंह बने सिंगही को दबोच लें।'
'तो फिर आज की रात तुम रमणी घाटी में क्या करने गई थीं?' मैंने पूछा।
'मैं उसी दिन से हर रात को थोड़ी देर के लिए रमणी घाटी में जाती हूं।' शीला ने बताया-- 'इस उम्मीद से कि अंधेरे में कहीं, रमणी घाटी में फंसा अपना कोई आदमी टकरा जाए तो उसे असलियत बताकर अपने साथ ले जाऊं। अपने तीन साथियों को मैं वहां से निकाल भी लाई हूं। आज भी मैं वहां इसी टोह में गई थी कि आप मिल गए और अपने उद्योग से मैं आप ही को उसके पंजे से निकाल लाई।'
काफी देर तक वह मुझसे इसी विषय पर बातें करती रही और सच पूछो तो ये सारी बातें उसने इस ढंग से कही थीं कि मुझे उसकी बातें सही-सी लगने लगीं। जब हम पहाड़ी इलाके से निकलकर जंगल में आ गए तो काफी थक गये थे। हमारे घोड़ों को भी काफी तेज दौड़ने के सबब से पसीना आ गया था। अत: वह बोली- 'क्यों न थोड़ी देर आराम कर लिया जाए...घोड़े भो सुस्ता लेंगे।
मैंने उसका प्रस्ताव मान लिया।
हमने मुनासिब जगह देखकर घोड़े एक दरख्त से बांध दिए और खुद भी उसके नीचे बैठ गए। मैं उस वक्त चौंका...जब शीला ने अपने बटुए से एक खाकी रंग की मोमबत्ती निकालकर चकमक से जलाई। मेरा शेरसिंह वाला दिमाग फौरन चेतन हो उठा। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि खाकी रंग की मोमबत्ती ऐयार लोग अपने दूसरे ऐयारों को धोखा देने के लिए रखते हैं। मैं ये भी जानता हूं कि ऐसे मौकों पर खाकी मोमबत्ती जलाने का किसी का उद्देश्य क्या होता है? मैं समझ गया कि शीला मुझे किसी तरह का धोखा देना चाहती है। लेकिन मैं कुछ बोला नहीं। मैंने मन में निश्चय कर लिया था मैं इसके धोखे में आ जाने का नाटक करूंगा।
और...ऐसा ही मैंने किया भी।
उसके मोमबत्ती जलाने के थोड़ी ही देर बाद मैंने इस तरह से झूमना शुरू कर दिया...मानो मुझ पर बेहोशी हावी होती जा रही है, जबकि हकीकत ये थी कि मैंने अपनी सांस रोक रखी थी। सांस रोके हुए ही मैंने लड़खड़ाती जुबान में कहा- 'हमारा सिर चकरा...!'
और...यह वाक्य पूरा किए बिना ही मैं जंगल की जमीन पर गिर पड़ा! अब मैं नाटक कर रहा था जैसे वाकई बेहोश हो गया हूं। हकीकत ये थी कि मैं सांस रोके, अपनी आंखों में हल्की-सी झिरी बनाए सामने ही खड़ी शीला को देख रहा था। मुझे बेहोश हुआ जानकर शीला बड़े गर्व के साथ-मुस्कराई। उसने बटुए से दूसरी मोमबत्ती निकालकर खाकी मोमबत्ती की लौ से ही जलाकर खाकी मोमबत्ती बुझा दी।
अब मैं धीरे-धीरे सांस लेने लगा।
'हूं !' वह मेरी तरफ देखकर मुस्कराईं- 'शेरसिंह ऐयार !'
इसके बाद उसने बहुत जोर से जाफिल बजाई। जाफिल की आवाज रात के सन्नाटे और अंधेरे को चीरती हुई जंगल में दूर-दूर तक गूंज उठी। कुछ ही देर बाद जंगल के चारों ओर से चार घुड़सवार दौड़ते हुए मेरे चारों तरफ आ खड़े हुए।
'वाह, दारोगा साहब...आपने तो हद कर दी।' उनमें से एक घुड़सवार बोला।
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