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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''उसने कहा था कि तुम सिंगही हो।' अलफांसे ने जवाब दिया- ''और दुनिया में यही एक ऐसा नाम है, जिसे सुनकर मैं हमेशा चौंकता हूं। मगर इस टापू पर उसका नाम सुनकर मैं जितनी बुरी तरह चौंका, पहले कभी उसके नाम ने मुझे इतनी बुरी तरह नहीं चौंकाया था।''

''क्या कहा?'' एक बार फिर गुरुवचनसिंह बुरी तरह चौंक गए- 'उस लड़की ने सिंगही का नाम लिया.. सिंगही!''

''हां!'' अलफांसे ने कहा- ''लेकिन तुम इस नाम पर इतने चौंक क्यों रहे हो? क्या तुम सिंगही को जानते हो? क्या तुमने उसे देखा है?''

''जी हां!'' गुरुवचनसिंह बोले- ''सिंगही नाम एक शैतान से भी भयानक आदमी का है। उसकी तो शक्ल ही ऐसी है कि देखते ही आधी जान जैसे उसकी वे छोटी-छोटी और गजब की चमकीली आखें खींच लेती हैं। चेहरा ऐसा है, जैसे किसी मुर्दे का चेहरा हो। पीला रंग.. खुरदरी-सी दाढ़ी.. कहने वाले कहते हैं कि वाकई वह कोई मुर्दा है जो अपनी कब्र को किसी तरह फाड़कर बाहर आ गया है।'' सुनते-सुनते अलफांसे की आखें फैल गईं। एक बार को तो उसे यही यकीन नहीं आया कि वह वही सुन रहा है. ..जो गुरुवचनसिंह कह रहा है। न जाने क्यों उसके कंठ से यह बात नीचे नहीं उतर रही थी कि सिंगही उस टापू पर हो सकता है। मगर.. ऊपर के कुछ अलफाजों में गुरुवचनसिंह ने सिंगही का जो हुलिया बयान किया था, वह उसी सिंगही का था.. जो विश्व के लिए एक भयानक मुसीबत था। उसने पूछा- ''क्या तुमने सिंगही को अपनी आंखों से देखा है?''

''मैंने ही क्या.. इस टापू के वच्चे-बच्चे ने उसे देखा है।'' जिस वक्त गुरुवचनसिंह यह कह रहा था, उस वक्त अलफांसे ने उसके चेहरे पर ऐसे भाव देखे थे - मानो वह सिंगही की याद मात्र से ही बुरी तरह आतंकित हो उठा हो।

अलफांसे बोला- ''मगर तुम सिंगही से कुछ भयभीत-से नजर आते हो! क्या उसने तुम्हारे साथ कोई ऐसा काम किया है, जिससे तुम उससे डरने लगे हो?''

''उस भयानक दरिन्दे के डर की छाप आप मेरे चेहरे पर इतने गहरे ढंग से नहीं देख पा रहे हैं जितनी कि इस टापू के दूसरे लोगों के चेहरों पर मिलेगी।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''उसने केवल मेरे ही साथ नहीं-बल्कि पूरे टापू पर ऐसे-ऐसे कारनामे किए हैं कि जिसके सामने भी उसका नाम ले देंगे, वही डर से कांपने लगेगा। शायद ही यहां का कोई ऐसा इन्सान हो - जिसने उस दरिन्दे का पीला और भयानक चेहरा न देखा हो।''

''क्यों - ऐसा उसने यहां क्या किया है?'' अलफांसे ने पूछा। - ''वह मैं आपको बाद में बताऊंगा, पहले आप वह हाल मुख्तसर में बयान कर जाइए जो बीच में रह गया।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''सिंगही का हाल क्योंकि लम्बा है, इसलिए आपको आराम से बैठकर बाद में बताऊंगा। तो खुद को शीलारानी बताने वाली उस ऐयार ने कहा कि मैं गुरुवचनसिंह नहीं, बल्कि सिंगही हूं। इसका मतलब तो ये हुआ कि सिंगही उनके साथ है लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह तो...!''

''आप क्या कहना चाहते हैं?''

''मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूं - वह बाद ही में कहूंगा।'' गुरुवचनसिंह बोले- ''पहले आप अपना हाल मुख्तसर में कहिए।''

''ठीक है, पहले मैं ही बताता हूं।'' हालांकि इस वक्त अलफांसे को सिंगही की बात से ज्यादा दिलचस्पी थी, पिर भी अपनी उत्सुकता को दबाकर उस ने कहना शुरू किया- ''मैं उसके मुंह से सिंगही का नाम सुनकर चौंक पड़ा, क्योंकि इस जन्म का वह हमारा बड़ा विचित्र दुश्मन है। इस तरह से मुझे कथित शीला में बहुत-सी दिलचस्पियां हो गईं और मैं उसके साथ चल दिया। वह सुरंग रमणी घाटी से बाहर जाने का रास्ता तो है ही। वह मुझे उसी रास्ते से बाहर ले गई। बाहर दो घोड़े खड़े थे-उन्हीं में से एक पर मैं सवार हो गया और दूसरे पर वह। हम वहां से रवाना होकर थोड़ी ही दूर निकले थे कि वह बोली- 'आप मेरे मुंह से सिंगही का नाम सुनकर चौंके क्यों थे?'

'इसलिए कि वह मेरा दुश्मन है और उसकी मौजूदगी इस टापू पर आश्चर्य की बात है।' मैंने कहा। यहां पर मैं आपको यह बता देना मुनासिब समझता हूं कि उस वक्त तक मुझे यह ख्याल नहीं था कि शीला मेरी हमदर्द है या दुश्मन। मेरे उस वक्त के विचारों से वह दोस्त भी हो सकती थी। क्योंकि अंत में तुमने सुरंग के बारे में झूठ बोलकर अपने ऊपर से मेरा यकीन खो दिया था।

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