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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''क्या मतलब?'' गुरुवचनसिंह चौंक पड़े- ''आप कहना क्या चाहते हैं?''

''यह खत दलीपसिंह के उन्हीं ऐयारों ने लिखकर वहां डाला था जो मुझे धोखे में डालकर मार डालना चाहते थे।'' अलफांसे ने कहा- ''वाकई उन्होंने काफी खूबसूरत चाल चली थी। यह खत वे पहले ही अपनी योजना के मुताबिक लिखकर लाए होंगे। अंधेरे में उन्होंने इसे वहां डाल दिया और मैं खुद भी अंधेरे के कारण उन्हें यह खत डालते नहीं देख सका। यह खत वहां डालने का उनका उद्देश्य यही था कि तुम इसे मेरा खत समझकर निश्चिंत हो जाओ और बेवजह मेरे लिए परेशान होकर खुद किसी तरह की ऐयारी न करो और वे अपने इस मकसद में कामयाब हो गए।''

''ओह!'' समझते ही गुरुवचनसिंह के मुंह से एक आह निकल गई- ''वाकई हमने बड़ा बुरा धोखा खाया। हालांकि हम आपकी पिछले जन्म की लिखाई को अच्छी तरह से पहचानते थे लेकिन इस खत से इसलिए धोखा खा गए, क्योंकि हमने सोचा - इस जन्म में आपकी लिखाई तो अलग होगी ही और उस लिखाई से हम वाकिफ नहीं थे। सचमुच - हमने बहुत ही तगड़ा धोखा खाया। हम तो समझे कि यह खत आप ही का है।''

''तुम्हें यह तो सोचना ही चाहिए था कि अगर इसमें लिखे मुताबिक हमें कोई दूसरा पत्र मिला होता तो हमारे पास इतना वक्त कहां था कि हम इतना लम्बा खत तुम्हें लिख सकते, हमारे पास कलम-दवात भी नहीं थी। तीसरी बात वहां अंधेरा भी था।''

''हम शर्मिदा हैं कि इनमें से एक भी बात एक सायत के लिए भी हमारे दिमाग में नहीं आई।''

'खैर, अब तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो!'' अलफांसे बड़े ध्यान से गुरुवचनसिंह को घूरता हुआ बोला, ठीक इस तरह मानो उसे गुरवचनसिंह पर किसी तरह का शक हो- ''तुमने उस वक्त सुरंग में मुझसे झूठ क्यों बोला था?''

''कौन-सा झूठ?'' गुरुवचनसिंह ने चौंकते हुए सवाल किया।

''यही कि उस चौराहे से दाहिनी ओर को जाने वाली सुरंग सीधी एक खाई में खुलती है?'' अलफांसे ने पूछा।

''ओह-अच्छा !'' गुरुवचनसिंह को जैसे याद आ 'गया- ''वाकई मैंने झूठ बोला था लेकिन मुझे क्या मालूम था कि उस एक ही बात से आप मुझ पर शक करने लगेंगे। उस वक्त वह झूठी बात कहने के पीछे कोई और नहीं, इतना ही सबब था कि मैं यह देखना चाहता था कि आपको कुछ याद भी आया है या नहीं। हालांकि इस बात की पुष्टि मैं पहले ही कर चुका था किंतु उस चौराहे पर मैंने आपसे झूठ बोलकर यह देखने की कोशिश की थी कि कोई चीज आप भूले तो नहीं हैं? मैंने सोचा था कि अगर आप भूल गए होंगे तो मेरी बात का यकीन कर लेंगे, वरना मेरे झूठ को पकड़ लेंगे।''

''ठीक है, तुमने भी अपने दिमाग से ठीक ही काम किया था।'' अलफांसे बोला- ''लेकिन उस बात से मेरे दिमाग में तुम्हारे लिए शक का एक बिंदु उभर गया था, क्योंकि मुझे उस सुरंग का रास्ता अच्छी तरह याद आ चुका था...। अगर मेरे दिमाग में तुम्हारे प्रति उस बात से शक नहीं उभरता तो मैं उस दलीपसिंह के ऐयार के साथ जाता भी नहीं। वह तो मेरे दिल में तुम्हारे प्रति पैदा हुए शक ने मुझे उसकी बात सुनने के लिए मजबूर कर दिया।''

''क्या आप मुख्तसर में बता देंगे कि वहां आपके साथ क्या हुआ था?'' गुरुवचनसिंह ने पूछा।

''जिस वक्त तुमने उस सुरंग के बारे में झूठ बोला, उस वक्त तुम मुझसे आगे चलते हुए सुरंग के मोड़ पर मुड़ गए थे।'' अलफांसे ने बताना शुरू किया- 'मैं मोड़ पर मुड़कर तुम्हारी बात की खिलाफत करने ही वाला था कि पीछे से किसी ने अंधेरे में मेरे कंधे पर हाथ रखा और बहुत धीमे से उसने मुझसे अपनी बात सुनने की इच्छा जाहिर की! मैंने देखा कि वह एक लड़की थी। उसने अपना नाम शीलारानी बताया और तुम्हें नकली गुरुवचनसिंह कहा। इस बात के पक्ष में उसने मुझे सुरंग के बारे में तुम्हारे द्वारा बोले गए झूठ का हवाला भी दिया।''

(यह सब आप मुख्तसर में चौथे भाग के आखिरी बयान में पढ़ आए हैं।)

'जब मैंने उससे पूछा कि तुम यानी बकौल उसके नकली गुरुवचनसिंह कौन है तो उसका जवाब सुनकर मैं चौक पड़ा।'' अलफांसे ने कहा।

''क्यों, उसने ऐसी क्या बात कहीं कि आप चौंक गये?''

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