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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

जैसे दो मजबूत चट्टानें हों। दो जन्मों की अलग-अलग नाम की दो शक्तियां। दोनों ही अपने-अपने हुनर में माहिर। कौन जानता था कि हमेशा एकदूसरे से टकराने वाले विजय और अलफांसे का रिश्ता इतना गहरा होगा। न जाने कितनी बार वे आमने-सामने आए थे - मगर आज - एक-दूसरे से मिलने की आतुरता उनमें आज जैसी कभी नहीं थी। आज जैसी अनुभूति उन्हें कभी नहीं हुई थी। आज तो जैसे वे शातिर एक-दूसरे के लिए पागल हो गए थे। कैसा अनोखा मिलन था ये - एक जन्म के बिछड़े भाई दूसरे जन्म में मिल रहे थे।

विजय और अलफांसे!

पूर्व जन्म के भाई।

एक-दूसरे की तरफ भागते-भागते, एक-दूसरे के प्यार में जैसे वे पागल हो गए। बांहें फैलाए -- वे आमने-सामने से दौड़े चले आ रहे थे। विजय चीखा- ''शेरसिंह... ऽ.. .ऽ...!''

अलफांसे चीखा-- ''देवसिंह.. .ऽ...ऽ...!''

विजय फिर चीखा--- ''शेरसिंह...ऽ..ऽ....!''

अलफांसे फिर चीखा-- ''देवसिंह...ऽ.ऽ...!''

और - वह वक्त भी आ गया जब ये दोनों चट्टानें एक-दूसरे से मिल गईं। दो फौलादी सीने टकराए। चार बांहों ने दो जिस्मों को अपनी पूरी ताकत से भींच लिया। पहले अलफांसे ने विजय को उठा लिया। फिर विजय ने अलफांसे को। रमणी घाटी का जर्रा-जर्रा जैसे उनकी पुकारों से गूंज उठा। रमणी घाटी की सुरंगों-मैदानों-नदियों-पहाड़ों की चोटियों और घाटियों से देवसिंह और शेरसिंह की पुकार गूंजने लगी। रमणी घाटी का जर्रा-जर्रा जैसे उन्हीं दोनों को पुकार रहा था। अलफांसे और विजय आज एक नये रूप में मिले थे। सीक्रेट सर्विस का चीफ जैसे चीफ न रहा। अन्तर्राष्ट्रीय शातिर जैसे शातिर न रहा। दोनों जिस्म जैसे एक बन जाना चाहते थे।

गुरुवचनसिंह, गणेशदत्त, गौरवसिंह और महाकाल उन दोनों के इस जबरदस्त मिलन को देख रहे थे।

वे जैसे पागल हो गए थे। अलफांसे विजय को पागलों की भांति चूमने लगा और - और - विजय चीख पड़ा- ''शेरसिंह - कांता तिलिस्म में कैद है - तेरी भाभी तिलिस्म में कैद है। उसे छुड़ाएगा नहीं - कांता मुझे पुकार रही है शेरू - उसे तिलिस्म से निकालना है - मैं उनकी बोटी-बोटी करके डाल दूंगा जिन्होंने कांता को कैद किया है - शेरू-कांता को तिलिस्म से निकालना है - कांता को...।''

''हां - हां - भैया - मैं भाभी को तिलिस्म से निकालूंगा - तुम चिंता मत करो।'' अलफांसे भी इस जन्म से जैसे दूसरे जन्म में पहुंच चुका था- ''एकएक की बोटी नोंच डालूंगा। खून की नदियां बहा दूंगा - सारे भरतपुर में आग लगा दूंगा।''

विजय और अलफांसे का मस्तिष्क जैसे पूर्व जन्म की यादों में डूब गया था। इस वक्त तो उन्हें यह भी याद नहीं था कि उनका नाम विजय और अलफांसे है। अब तो वे अपने पूर्व जन्म की भयानक यादों में डूब गए थे। गुरुवचनसिंह आगे पहुंचे। बटुए से बुकनी निकालकर उनके मुंह पर मारी। वे दोनों चीखते हुए-एकदूसरे को बांहों में लपेटे जमीन पर गिरकर बेहोश हो गए।

मगर - रमणी घाटी की पहाड़ियों में अब भी उनकी आवाज टकरा-टकराकर गूंज रही थी। मानो ये पहाड़ियां उनके बेहोश होने पर, उन्हीं के अलफाजों को दोहराती हुई -- उन्हीं का समर्थन कर रही हों। उनकी आवाज घाटियों में भटकती फिर रही थी।

 

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