उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘और फिर अपने विरोधियों की हत्या करने में यह सदा यत्नशील रहा है। इसने गाँधी जी की हत्या करायी...।’’
‘‘अरे...रे...रे।’’ अनायास ही लड़की के मुख से निकल गया, ‘‘आप मुझे मूर्ख समझते हैं अथवा आप स्वयं मूर्ख हैं। जिस बात को सब दुनिया जानती है, आप उसको झुठला रहे हैं।’’
तेजकृष्ण मुस्कराता हुआ लड़की के कथन को सुनता रहा। जब वह कह चुकी तो बोला, ‘‘आई बेग योअर पार्डन मैडम।१ मैं समझता हूं कि हमने ऐसे विषय पर वार्तालाप करना आरम्भ कर दिया है जिस पर हमारा मतभेद है। यह मेरी भूल थी। (१.मैं आपसे क्षमा चाहता हूं।)
‘‘अच्छा क्षमा करें। आपने मेरा परिचय तो प्राप्त कर लिया और वह परिचय देते हुए मैंने अपने उस स्वरूप का वर्णन करना आरम्भ कर दिया था जो आपकी दृष्टि में स्वरूपवान नहीं। परन्तु यदि मैं आपका परिचय प्राप्त करना चाहूं तो क्या कुछ अनुचित होगा? आपकी माता जी चण्डीगढ़ में कहां रहती हैं?’’
‘‘ऐसा प्रतीत होता था कि लड़की भी राजनीति पर वार्तालाप करती हुई ऐसे विषय को छेड़ बैठी अनुभव करती थी जिस पर यदि वार्तालाप कुछ देर और चलता रहता तो वे शीघ्र ही लड़ पड़ते और शेष यात्रा भर वे परस्पर एक-दूसरे का मुख देखना भी पसन्द न करते। कदाचित् यह आवश्यक हो जाता कि वह एयर होस्टेस से कह कर अपनी सीट बदलवाने का यत्न करती। इस कारण बातों का विषय बदलता देख उसे सुख अनुभव हुआ और उसने तुरन्त राजनीति छोड़ निजी परिचय देना आरम्भ कर दिया। उसने कहा, ‘‘मेरा नाम मैत्रेयी सारस्वत है। मुझे भारत सरकार से पाँच सौ पौण्ड वार्षिक की छात्र-वृत्ति मिल रही है और मैं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ‘ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों का अर्थ’ विषय पर शोध कर रही हूं। मेरा कार्य लगभग समाप्त है और मैं अपना ‘थीसेज’ (शोध-प्रबन्ध) लिख चुकी हूं। कल माता जी का ‘केबल’ मिला था और मैं आज दिल्ली के लिये चल पड़ी हूं।
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