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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘यह मैं रात ही कर गयी थी। जब आप यहां से निकल उस कमरे में गयी थीं तो मैंने उसी समय बाहर से चिटकनियां चढ़ा दी थीं।’’

‘‘अच्छा, अब खोल दो और जब पूछें, तो बता देना कि मैं ब्रैकफास्ट के लिए डायनिंग हाल में इन्तज़ार कर रही हूं।’’

नसीम दरवाजे की चिटकनियां खोलने लगी तो नज़ीर खाने के कमरे में जा प्रतीक्षा करने लगी।

नसीम दरवाजा खोल रसोई घर से नाश्ते का सामान लाकर लगाने लगी। अय्यूब खाँ अपनी दिन की पोशाक पहने हुए डायनिंग हाल में आया तो वहां नज़ीर को बैठे देख मुस्कराता हुआ उनकी ओर देखने लगा। इस पर भी वह नसीम की उपस्थिति में कुछ बोला नहीं। नज़ीर ने ही कहा, ‘‘पापा! गुड मार्निग।’’

उसने इसका कुछ उत्तर नहीं दिया और वहां मेज पर रखा समाचार-पत्र पढ़ने लगा। लाहौर हाई कोर्ट का फैसला छपा था। उसमें जज ने कहा था कि ‘डेमोक्रेटिक सैट-अप’ के यह विपरीत होने से गवर्नर मैंट का विपक्षी दलों पर ‘बैन’ लगाना कानून के विरुद्ध है।

इस आज्ञा को पढ़ वह परेशानी अनुभव करने लगा। एकाएक वह बोल उठा, ‘‘मैं आज एक अन्य कानून जारी कराने वाला हूं।’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि जब सरकार कोई कानून पास कर दे तो किसी न्यायालय को उसे रद्द करने का कोई अधिकार नहीं।’’

इस पर नज़ीर ने कह दिया, ‘‘मैं आज इंगलैंड जा रही हूं।’’

‘‘क्यों?’’

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