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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘मां की याद आने लगी है।’’
‘‘मगर तुम दूध पीती बच्ची हो जो मां को याद करने लगी हो।’’
‘‘मां-बेटी का सम्बन्ध दूध पीने का अब नहीं रहा। प्रायः माताएं बच्चों को अपना दूध नहीं पिलातीं।’’
‘‘तो कैसा सम्बन्ध रह गया है?’’
‘‘जो बच्चों को मां के पेट में बनाता है। यह दूध से भी घने रक्त का सम्बन्ध होता है। मैं आज जा रही हूं।’’
‘‘कैसे जाओगी?’’
‘‘हवाई जहाज़ से।’’
‘‘आज तो विलायत के लिए यहां से कोई जहाज जाता नहीं।’’
‘‘मैं यहां से दिल्ली और दिल्ली से लन्दन जाने का विचार रखती हूं।’’
‘‘मुझे भी तुम्हारी मां रात भर याद आती रही है।’’
‘‘तो उसे यहां बुला लीजिये।’’
‘‘यही विचार कर रहा हूं। परन्तु तुम्हारे चले जाने पर तो वह आयेगी नहीं।’’
इस समय बाहर घण्टी बजी। नसीम देखने चली गयी कि कौन आया है। अय्यूब खां ने यह सुअवसर जान कह दिया, ‘‘तुम रात भाग क्यों गयी थीं?’’
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