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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तृतीय परिच्छेद
1
तेजकृष्ण हवाई जहाज से कलकत्ता के लिए प्रातःकाल सात बजे चला था। उसके साथ की सीट पर एक पंजाबी सैनिक अधिकारी बैठा था। जब हवाई जहाज चला तो उसने अपने चारों ओर बैठे हुओं को देखना चाहा। एक समाचार-पत्र का सम्वाददाता होने के कारण यह उसका स्वभाव बन गया था। उसका जीवन-कार्य था अपने आस-पास स्थित व्यक्तियों से सब सम्भव सूचनाएं ग्रहण करना। इस कारण वह कुछ मिनटों के सम्पर्क से किसी से भी मित्रता बना लेने का स्वभाव रखता था।
उसने जब अपने साथ ही सीट पर बैठे किसी अन्य सैनिक अधिकारी को देखा तो पूर्व इसके कि वह किसी प्रकार से वाकफीयत उत्पन्न करने का यत्न करे, उसे यह अनुभव हुआ कि सैनिक अधिकारी उसकी ओर देखकर मुस्करा रहा है।
तेजकृष्ण विचार करने लगा कि इस व्यक्ति से वह कहां मिला है। वह उसे पहचान रहा प्रतीत होता था। तेजकृष्ण पत्तन के बुक-स्टाल से समाचार पत्र खरीद कर लाया था। वह समाचार-पत्र पढ़ने का बहाना करता हुआ विचार करने लगा कि यह कोई मेजर के रैंक का प्रतीत होता है।
‘‘आज का समाचार क्या है?’’ उस सैनिक अधिकारी ने पूछ लिया।
तेजकृष्ण हंस पड़ा। हंसते हुए बोला, ‘‘मैं अखबार नहीं पढ़ रहा।’’
‘‘ओह! तो फिर इस अखबार में क्या ढूंढ़ रहे हैं?’’
‘‘जी! अखबार देखता हुआ मैं यह विचार कर रहा था कि आपको कही देखा है।’’
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