|
उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
|
203 पाठक हैं |
जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तोवांग में उस क्षेत्र के ब्रिगेडियर-जनरल मिले। तेजकृष्ण ने उससे पूछा, ‘‘यदि कहीं चीनियों को यह पता चल गया कि आपकी हालत कितनी खराब है तो वे मूर्ख होंगे जो आप पर आक्रमण नहीं कर देंगे।’’
ब्रिगेडियर ने तेजकृष्ण को एक सामान्य नागरिक और सैनिक आवश्यकताओं से अनभिज्ञ व्यक्ति समझ कह दिया, ‘‘इस कारण हमने सीमा और तोवांग में सड़के नहीं बनायीं। हम तो आक्रमण करने का विचार रखते नहीं। इस कारण सड़कों का न होना हमारे लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं। परन्तु यह बाधा आक्रमण करने वाले के लिए तो है ही।’’
‘‘ब्रिगेडियर साहब! मैं यह नहीं पूछ रहा। मैं यह जानना चाहता हूं कि यदि कहीं ढोला अथवा हथुंगला जैसी चौकियों पर जो थागला घाटियों पर तथा उसके समीप है, आक्रमण हो गया तो आप वहां कितनी जल्दी और कितनी संख्या में कुमुक पहुंचा सकते है।’’
‘‘यह हमारा सैनिक रहस्य है। इसे आप नहीं पूछ सकते।’’
‘‘क्षमा करें! मैं समझता हूं कि मैंने न पूछने योग्य बात पूछ ली है।’’
इसके उपरान्त अट्ठारह हजार फुट की ऊंचाई पर ढोला तक तेज को ले जाया गया। वह अनुभव करता था कि प्रकृति ने हिमालय का पूर्ण सौन्दर्य इस स्थान पर प्रस्तुत किया है। कितने ही मिनट तक वह मन्त्र-मुग्ध उस भव्य दृश्य को देखता खड़ा रहा। थागला घाटी के पार तिब्बत था और इसी घाटी मर से मैकमोहन सीमा देखी जाती थी।
यहां पहुंच चीनियों के दावे की भयंकरता तेज को समझ आ गयी थी। इसी घाटी से इधर चीनी उतर आये तो फिर उनको टिड्डी दल असम के मैदानों में उतरने का प्रबन्ध कर लेगा। अंग्रेज ने हिन्दुस्तान की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक समझा था कि इस देश की सीमा कहां रखे? इसका अर्थ यह था कि इस सीमा तक अपने देश की सुरक्षा का प्रबन्ध बिना बाधा के किया जा सके।
|
|||||










