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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


अंग्रेज ने यदि अपने काल में यहां रक्षा का प्रबन्ध नहीं किया था तो इस कारण कि हिन्दुस्तान और चीन के बीच में तिब्बत के विस्तृत मैदान थे जहां पहुंचना और युद्ध करने का अधिकार अंग्रेज ने तिब्बत से संधि के द्वारा प्राप्त कर रखा था।

भारत की स्वराज्य सरकार ने स्वतः प्रसन्नतापूर्वक तिब्बत चीन को दे दिया और उन्होंने बारह वर्ष में तिब्बत में यातायात का प्रबन्ध ऐसा कर लिया था कि पहाड़ों पर कार्य करने वाले छोटे-टैंक मैकमोहन लाइन तक आ सकते थे। यह तो सुरक्षा का प्रबन्ध था। इधर भारत सरकार बांडुंग कान्फरेन्स के उपरान्त लम्बी तान कर सो गयी थी। इन्होंने बारह वर्षों में मैकमोहन सीमा रेखा तक पहुंचने का भी प्रबन्ध नहीं किया हुआ था।

यह सब बात तेजकृष्ण समझ रहा था और भारत के लिए चिन्ता अनुभव कर रहा था।

दो सप्ताह के भ्रमण के उपरान्त पन्द्रह अक्टूबर को वह गोहाटी और उसी दिन शिलांग पहुंच गया।

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