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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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तेजकृष्ण के पास दिल्ली स्थित पाकिस्तान हाई कमिश्नर का एक पत्र मिस्टर टॉम पीटर के नाम था। यह एक ईसाई युवक डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय में स्टेनों का काम करता था। तेजकृष्ण के पास उसके घर का पता था। वह एक होटल में ठहर कर मध्याह्नोत्तर उसके घर पर जा पहुंचा। मिस्टर पीटर मिसेज पीटर और एक बच्चे के साथ अपने मकान के बरामदे में बैठा चाय ले रहा था, जब तेजकृष्ण पहुंचा।
तेजकृष्ण ने मकान के कम्पाउण्ड के फाटक के समीप खड़े हो बरामदे में बैठे दम्पति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने लिए अंग्रेज़ी भाषा में पूछ लिया, ‘‘क्या मैं भीतर आ सका हूं?’’
‘किस काम से?’’ मिस्टर अपनी कुर्सी से उठ फाटक की ओर आते हुए पूछने लगा। तेजकृष्ण पूरी अंग्रेज़ी पोशाक में था और यह पोशाक ईसाई समुदाय में मान-प्रतिष्ठा का स्थान रखती थी।
पीटर के समीप आ जाने पर तेज ने कहा, ‘‘मैं मिस्टर टॉम पीटर से मिलने आये हूं।’’
‘‘कहाँ से आये हैं?’’
तेज ने धीरे से कहा, ‘‘मेरे पास परिचय-पत्र है। क्या यह यहां खड़े-खड़े ही देखियेगा!’’ पीटर इस समय फाटक के समीप आ गया था।
पीटर ने कुछ विचार किया और फाटक खोलकर कहा, ‘‘आइये! भीतर आ जाइयें।’’
‘‘आधे घण्टे से आपका मकान ढूंढ़ रहा था। यदि यह द्वार पर नाम-पट्ट न लगा होता तो आपके दर्शन असम्भव ही थे।’’
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