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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
तेज को भीतर क्वार्टर के सिटिंग रूम में बिठाकर पीटर पूछने लगा, ‘‘हाँ, साहब! अब फरमाइये।’’
तेज ने अपने ब्रीफ केस में से वह पत्र निकाल कर दे दिया जो अज़ीज अहमद ने उसे दिया था। वह पत्र खुला ही था और टॉम पीटर ने पत्र पढ़ कर सिर से पांव तक आगन्तुक को देख पूछा, ‘‘यह पत्र आप कहां पा गए हैं?’’
‘‘दिल्ली में हाई कमिश्नर साहब ने यह स्वयं मुझे दिया है।’’
‘‘और आप मुझसे क्या सेवा चाहते हैं?’’
‘‘मैं पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस’ से सम्बन्धित एक अधिकारी हूं और सीमा पार तिब्बत के भीतर कुछ हालत आंखों से देखने के लिए भेजा गया हूं।’’
‘‘क्या लाभ होगा इससे?’’
‘‘लाभ-हानि की बात देखना मेरा काम नहीं, यह उनका काम है, जो भारी खर्चा कर मुझे इस मिशन पर लगाये हुए हैं।’’
मिस्टर थाम ने कुछ देर तक विचार कर कहा, ‘‘तुम ठीक कहते हो। परन्तु मैं भी ठीक कह रहा हूं। यह समय इस जानकारी प्राप्त करने का नहीं। यह तो आज से दो वर्ष पहले हो जानी चाहिए थी। खैर छोड़िए, इस बात को। मैं अपको कल यहां से गाइड के साथ भेज दूंगा। अपको पैदल जाना पड़ेगा। साथ में एक कम्बल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं ले जाना। अधिक बोझा उठाया नहीं जा सकेगा। पांच दिन जाने में और पांच दिन आने में, दो दिन वहां रहना होगा। साथ जाने वाला व्यक्ति दस रुपये नित्य लेगा। मार्ग में खाने-पीने पर व्यय पृथक् होगा।’’
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