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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


उसने मक्का चबाते हुए कहा, ‘‘देख लो! कहीं यहां से भागे तो इनकी गोली का शिकार न हो जायें।’’

‘‘आप चिन्ता न करें! मुझे अपनी पत्नी और लड़की का अधिक ख्याल है।’’

तेज का गाइड एक तिब्बती था और चीनी सेना से बहुत से तिब्बती भरती किये हुए थे। वह गाइड देख रहा था कि उनकी ‘हट’ के चौकीदार सब के सब तिब्बती ‘रिक्रूट’ हैं। जब तेज खा-पीकर आराम करने लेटा तो गाइड ने ‘हट’ का द्वार खटखटाया और जब द्वार खुला तो पहरा देने वालों से बात-चीत करने लगा। बातचीत करने पर गाइड ने अंग्रेज़ी में तेज को बताया, ‘‘रात के बारह बजे हम यहां से भागेंगे। दो के स्थान तीन व्यक्ति जायेंगे। हमको दरवाजा खोलकर बाहर निकालने वाला व्यक्ति भी हमारे साथ ही जायेगा।’’

‘‘वह यह क्यों करेगा?’’

‘‘इसे मैंने लालच दिया है।’’

‘‘क्या लालच दिया है?’’

‘‘यही कि भारत पर आक्रमण से सब धनी-मानी लोग घबरा कर भागेंगे और उस समय वहां लूट मच जायेगी। उस समय जो भी दिलेर आदमी वहाँ होगा, वह मालामाल हो जाएगा।’’

‘‘वह तैयार हो गया है?’’

‘हाँ!’’

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