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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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मैत्रेयी को ‘वाइवा वोसा’ में कठोर परीक्षा देनी पड़ी। इसमें कारण यह था कि उसके शोध-प्रबन्ध में कई ऐसे संकेत थे जिनकी सीधी टक्कर वर्तमान प्रचलित विद्वानों से थी। भ्रान्तियां वैज्ञानिक उपलब्धियों के नाम से विख्यात थीं।
प्रश्नोत्तरों में कई दिन लगे और प्रतिदिन छः घण्टे नित्य यह होता रहा। एक दिन सृष्टि रचना के विषय में वार्तालाप होने लगी। मैत्रेयी से यह पूछा गया, ‘‘आप सृष्टि रचना को कितना पुराना मानती हैं?’’
‘‘मेरे मानने न मानने का प्रश्न नहीं है। मैंने दोनो पक्ष अपने लेख में व्याख्या सहित बताये हैं। दोनों में कुछ अरब वर्ष का अन्तर है। मैं अन्तर को क्षम्य मानती हूं। इस कारण दोनों को ठीक मानती हूं। अन्तर को मैंने मनुष्य के अनुमान में भूल के कारण समझा है।’’
‘‘परन्तु आपने निबन्ध में कहा है कि सब जीव ऐसे ही उत्पन्न हुए हैं जैसे ये आज भूतल पर विद्यमान है।’’
‘‘यह वेद का मत है। वेद मत में विकासवाद को स्वीकार नहीं किया गया। इस मत में युक्तियां भी हैं। वह प्रक्रिया मैंने निबन्ध में लिखी है। इन युक्तियों में त्रुटि यदि हो तो बताइए। मैं समझती हूं कि वह युक्तियां अकाट्य हैं।’’
‘‘छः फुट का मनुष्य आज पैदा नहीं होता। इस कारण आदि सृष्टि में भी पैदा हुआ होगा, कैसे माना जा सकता है?’’
‘‘यदि आज पैदा नहीं होता तो इसलिए कि एक स्त्री के गर्भाशय में छः फुट के मनुष्य को रखने के लिए स्थान नहीं होता।’’
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