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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘अर्थात् हमारा आज यहां आना सर्वथा विफल रहा है।’’
‘नहीं! मैं एक बात भूल गया था। इससे उसे पुनः स्मरण कर रहा हूं। मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी? कानून और युक्तियां उनके लिए ही काम करती हैं जिनके मन में किसी प्रकार का सन्देह उपस्थित हो। यहां सन्देह प्रतीत नहीं होता।’’
मिस्टर करोड़ीमल और यशोदा अगले दिन बहुत प्रातःकाल लन्दन चले गये। वहां पहुंचते ही उन्होंने पता किया कि तेजकृष्ण का कुछ अन्य समाचार मिला है क्या?
समाचार-पत्र से सूचना मिली कि तेजकृष्ण गोहाटी बन्दीगृह से छूटकर दिल्ली आ गया है और इस समय वह दिल्ली में कुछ एक अधिकारियों से मिलने के लिए ठहर गया है। आशा करनी चाहिए कि वह कल अथवा परसों तक लन्दन पहुंच जाएगा।
यशोदा दोनों स्थानों से ऑक्सफोर्ड और दिल्ली से, समाचार आने की प्रतीक्षा करने लगी। ऑक्सफोर्ड से तो यह आशा करती थी कि ‘वैडिंग डिन्नर’ के निमन्त्रण की पुनरोक्ति आयेगी और दिल्ली से वह तेजकृष्ण से किसी प्रकार के समाचार की आशा करती थी।
उस दिन दिल्ली से किसी प्रकार का समाचार नहीं आया, परन्तु अगले दिन तेजकृष्ण का ‘केबल ग्राम’ मिला। लिखा था–कल बी० ओ० ए० सी० नम्बर ३१० से पहुंच रहा हूं।
अगले दिन बागड़िया तथा यशोदा हवाई पत्तन पर पुत्र का स्वागत करने जा पहुंचे। तेज के स्वागत के लिए समाचार-पत्र और यू० के० सरकार के प्रतिनिधि भी आये हुए थे।
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