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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘मैं अपना सामान मिस्टर टॉम के घर पर रखकर गया था। नेफा के नोट्स और वहां की स्थिति के विषय में मेरा विश्लेषण, सब उस सामान के साथ एक ब्रीफ केस में थे। वह मेरे शिलांग लौटने से पहले चोरी हो चुका था। मिस्टर टॉम का कहना है कि उसका पू्र्ण घर ही लूट लिया गया था।’’

‘‘इस कारण मैंने जो कुछ अब लिखा है, अपनी स्मरण रह गयी बातें ही हैं।’’

इसी तरह तेजकृष्ण ने अपने समाचार-पत्र के सम्पादक को भी एक बयान दिया। तदनन्तर वह घर पर बैठ कर अपने पूर्ण कार्य की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने लगा। इस सबमें चार-पांच दिन लग गये।

जब वह अपने सरकारी कार्य से अवकाश पा चुका तो उसे अपने विषय में विचार करने का अवसर मिला। वह नज़ीर की मां से मिलने गया। इरीन हैमिल्टन अभी भी लन्दन में ही थी। जब तेजकृष्ण ने अपना नाम भेजा तो वह बाहर आ गयी और तेज को भीतर ले जाकर उससे अपनी लड़की के विषय में पूछने लगी।

उसने पूछा, ‘‘आप जब अन्तिम बार उससे मिले थे, वह कौन-सी तारीख थीं?’’

‘‘मैं पच्चीस सितम्बर को दिल्ली से गोहाटी के लिए चला था। वह मुझे हवाई पत्तन पर छोड़ने आयी थी। बस वही हमारी अन्तिम भेंट थी।

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