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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘जब हम सबके बयान हो चुके तो मैंने मैजिस्ट्रेट साहब से ही कागज, क़लम ली और एक पत्र हाई कमिश्नर को लिख दिया। वह पत्र मैंने मैजिस्ट्रेट के हाथ में देकर कहा, ‘इसे भिजवा दीजिये।’ मैजिस्ट्रेट ने पत्र पढ़ा। उसमें मैंने लिखा था’’–
‘मैं अपने समाचार-पत्र के लिए यहाँ के समाचार भारत सरकार की स्वीकृति प्राप्त कर एकत्रित कर रहा था कि एकाएक मुझे पकड़कर गोहाटी बन्दीग्रह में बन्द कर दिया गया है। मेरे विरुद्घ किसी प्रकार का दोषारोपण नहीं। मैं आपसे निवेदन करता हूं कि मुझे, एक इंग्लैंड का नागरिक होने के नाते, यहां से छुड़ाने का यत्न किया जाये। मैं यहां बहुत कष्ट में हूं।’
‘‘मेरे इस पत्र को लिखने का ही यह परिणाम निकला है कि मैं छूट सका हूं।’’
तेजकृष्ण ने अपना लिखित वक्तव्य इंग्लैंड के विदेश विभाग को भी दिया। उसने उसमें लिखा–
‘‘मैंने अपनी नेफा में यात्रा का वृत्तान्त शिलांग से दिल्ली स्थित हाई कमिश्नर को लिख भेजा था। मैंने उनको यह भी लिखकर दिया था कि मैं कैसे तस्करी का लबादा ओढ़े हुए तिब्बत में पहुंचा था और वहां कैसे बन्दी बना लिया गया था। यदि चीन का आक्रमण बीस अक्टूबर को आरम्भ न होता और एक-दो-सप्ताह पीछे होता तो मैं इस दुर्घटना में न फंसता जिसका उल्लेख मैंने हाई कमिश्नर को किया है।’’
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