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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘आप कौन हैं?’’
‘‘मैं पहले मजिस्ट्रेट को बता चुका हूं। अब पुनः बताने की आवश्यकता नहीं समझता।’’
‘भाई!’ मजिस्ट्रेट ने कुछ गरम होकर कहा, ‘मैं यहां नया आदमी हूं और यहां पहला कोई रिकार्ड नहीं है।’
‘परन्तु श्रीमान्! इसकी क्या गारन्टी है कि जो कुछ आज लिखवाऊंगा वह कल फिर गुम नहीं हो जायेगा?’
‘‘तो यहां सब लोग अपना बयान लिखा चुके हैं?’’
‘पाँच बार!’ मैंने उत्तर दिया।
‘‘इस पर मैजिस्ट्रेट ने मुस्कराते हुए कहा, ‘अच्छा, मैं वचन देता हूं कि अब आपके बयान व्यर्थ नहीं जायेंगे।’’
‘मैं एक शर्त पर यह सब चक्की पुनः पीस सकता हूं, यदि मुझे अपने सम्बन्धियों को पत्र लिखने की स्वीकृति दी जाये। चार मास में मैंने एक भी पत्र किसी को नहीं भेजा।’
‘‘हां, यह आप कर सकेंगे।’’
‘‘इस पर मैंने पुनः अपने बयान लिखाये। मैंने अपना तिब्बत जाना नहीं बताया। यह लिखाया कि मैं अपने समाचार-पत्र की ओर से सीमावर्ती स्थानों का समाचार लेने आया था। मेरे पास भारत सरकार का परमिट भी था। वह गोहाटी में मिस्टर टॉम के घर से चोरी कर लिया गया है। मेरे विषय में शेष जानकारी यू० के० हाई कमिश्नर दिल्ली से प्राप्त की जा सकती है। क्योंकि मैं इंगलैंड का नागरिक हूं।’’
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