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उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
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ऑक्सफोर्ड पहुंच होटल में लंच लेने के उपरान्त यशोदा और तेजकृष्ण मैत्रेयी के क्वार्टर पर जा पहुंचे। मैत्रेयी घर पर ही थी। उसके पास दो अन्य विवाहित स्त्रियां बैठी हुई थीं और इनके घण्टी बजाने पर उन स्त्रियों में से एक ने उठकर देखा कि कौन द्वार पर घण्टी बजा रहा है। उसने इनसे पूछा, ‘‘किससे मिलने आये हैं?’’
उत्तर यशोदा ने दिया, ‘‘डाक्टर मैत्रेयी से।’’
‘‘आ जाइये।’’
मां-पुत्र दोनों भीतर गए तो मैत्रेयी यशोदा को देख उठ खड़ी हुई, परन्तु साथ में तेजकृष्ण को देख झिझक गयी। वह आगे बढ़ यशोदा से गले मिलने वाली थी, परन्तु तेजकृष्ण को देख वह गम्भीर भाव बना हाथ जो़ड़ नमस्ते करने लगी। यशोदा ने तेज के आने की सफ़ाई दे दी। उसने मैत्रेयी की पीठ पर हाथ फेर प्यार देते हुए कहा, ‘‘तेज तुम्हें बधाई देने और तुम्हारे लिए इस शुभ अवसर पर कुछ भेंट देने आया है। यह कहता है कि यह तुमसे स्नेह तो रखता ही है। इससे भूल यह हुई थी कि यह ‘अफैक्शन’ (स्नेह) को प्रेम समझने लगा था।’’
इस समय तक मैत्रेयी यशोदा की बांह में बांह डाल उसे सोफ़ा पर बैठाने के लिए ले गयी थी। वहां बैठकर मैत्रेयी ने तेजकृष्ण से कहा, ‘‘भाई साहब! बैठिये।’’ उसने सामने रखी कुर्सी पर बैठने का संकेत कर दिया।
अब वही स्त्री, जो यशोदा और तेज को भीतर लेकर आयी थी, पूछने लगी, ‘‘आप डॉक्टर मैत्रेयी के विवाह पर आयी है?’’
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