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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


तेजकृष्ण उठकर बाहर चला गया। इस समय दूसरी स्त्रियां पूछने लगीं, ‘‘डीयर मैत्रेयी! हम आपकी क्या सहायता कर सकती हैं?’’

‘‘धन्यवाद!’’ मैत्रेयी ने कहा, ‘‘मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। मुझे इस घटना पर किसी प्रकार का हर्ष अथवा शोक भी नहीं है। मैं समझती हूं कि मैं कल अपनी छुट्टी केंसिल करवा काम पर जाऊंगी।’’

वे स्त्रियां गयीं तो मैत्रेयी ने उनका परिचय यशोदा को दे दिया। उसने बताया, ‘‘इनमें से एक तो इण्डोलौजी विभाग में पिछले दो वर्ष से शोध-कार्य कर रही है और दूसरी पड़ोस में एक प्रोफ़ेसर स्टीवनसन की पत्नी है। दोनों मेरी परम सखी है।’’

यशोदा ने शोक प्रकट करते हुए पूछा, ‘‘क्या समझी हो इससे?’’

‘‘जब पिछली बार आप और पिता जी यहां आये थे तो पिता जी प्रोफ़ेसर साहब से कुछ बातचीत करते रहे थे। अगले दिन जब मिस्टर साइमन आये तो उन्होंने सामान्य रूप से यह बताया था कि पिता जी उन्हें विवाह करने से मना करते रहे हैं।’’

‘‘मैंने आपसे हुए वार्त्तालाप के विषय में कुछ नहीं बताया। वह स्वयं ही बताने लगे मैंने मिस्टर बागड़िया को कुछ उत्तर नहीं दिया, परन्तु मुझे उनकी युक्तियाँ ठीक नहीं प्रतीत हुईं।’’

‘‘इस सामान्य सूचना के उपरान्त इधर-उधर की बातें होती रहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि वह एक विषय पर नोट लिख रहे हैं और चाहते हैं कि ‘हनीमून’ पर जाने से पहले वह नोट समाप्त कर दूं। इस कारण कुछ दिन तक यहां आने का समय नहीं मिलेगा।’’

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