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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


भारतीय जनता को शान्त करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने संसद में जो वक्तव्य दिया था, वह भूमण्डल के राजनीतिक क्षेत्रों में हंसी का विषय बन गया था। तेजकृष्ण को इस वक्तव्य की प्रतिक्रिया, पड़ोसी देशों में और भारत में क्या हुई है, इसका समाचार एकत्रित करने के लिए कहा गया तो वह लन्दन से दिल्ली को चल पड़ा।

हवाई जहाज में, जिसमें वह लन्दन से आ रहा था, उसके साथ की सीट पर एक हिन्दुस्तानी लड़की बैठी हुई थी। हवाई जहाज लन्दन से मालटा, काहिरा, काहिरा से बम्बई तथा बम्बई से दिल्ली पहुँचने वाला था। दो दिन की यात्रा थी। इस लम्बी यात्रा पर साथ की सीट पर बैठे यात्री से वार्तालाप होना स्वाभाविक ही था। बात लड़की ने ही आरम्भ की। उसने पूछा, ‘‘आप कहाँ तक जा रहे हैं?’’

‘‘दिल्ली तक। इस बी० ओ० ए० सी० प्लेन का वही अन्तिम पड़ाव है।’’

‘‘तब तो ठीक है। आप दिल्ली में काम करते हैं अथवा लन्दन में?’’

‘‘दोनों स्थानों पर और वर्ष में पांच-छः बार आना-जाना पड़ता है। क्या मैं आपका परिचय प्राप्त कर सकता हूं?’’

‘‘जब हम दो दिन की यात्रा पर इस प्रकार साथ-साथ बिठा दिए गए हैं तो परिचय तो होगा ही। मैं ऑक्सफोर्ड में इण्डोलौजी पर शोध कार्य कर रही हूं। माँ चण्डीगढ़ में रहती है। समाचार आया है कि वह बीमार है। अतः उनकी खबर लेने जा रही हूं।’’

विवश तेज को भी अपना परिचय देना पड़ा। उसने कहा, ‘‘मैं ‘लन्दन टाइम्स’ का भारत तथा भारत के पड़ोसी देशों में सम्वाददाता हूं। मेरा जन्म बम्बई में हुआ था। पिता पहले बम्बई सरकार के सेक्रेटरी थे और पीछे सेक्रेटरी आफ स्टेट फार इंडियन के कार्यालय में सुपरिण्टेण्डेण्ट हो गए थे। आजकल वह अवकाश प्राप्त कर लन्दन के समीप ‘ऐसैक्स’ में एक कॉटेज बनाकर रहते हैं।’’

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