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उपन्यास >> आशा निराशा

आशा निराशा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7595

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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...


‘‘अर्थात् आप बहुत धनी व्यक्ति के सुपुत्र हैं?’’

‘‘हाँ! मेरे पिता नाम के और काम के भी धनी हैं।’’

‘‘क्या मतलब? मैं समझी नहीं।’

‘‘उनका नाम है श्री के० एम० बागड़िया अर्थात् करोड़ीमल बागड़िया और सरकारी सेवा से अवकाश पाने के उपरान्त वह अब भारत से आयात-निर्यात का व्यापार करते हैं। उनकी ईस्टर्न इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट एजेंसी है और पत्र लिख-लिखकर ही लाखों पैदा कर लेते हैं।’’

इतना कहते-कहते तेज की हँसी निकल गई। लड़की अपने समीप बैठे युवक के इस प्रकार हँसने पर उसका मुख देखती रह गई।

तेजकृष्ण ने कहा, ‘‘मुझे पत्र लिखकर धन कमाने की अपनी बात से बचपन की एक घटना स्मरण आ गई है।’’ इस पर तेजकृष्ण ने तब से बीस वर्ष पूर्व की, पिता के बम्बई से लन्दन सेवा के स्थानान्तर होने के समय बताई बात बता दी।

समीप बैठी लड़की पांच वर्ष के बालक के स्वप्न की बात सुनकर गम्भीर हो गई। जब तेजकृष्ण स्वप्न की पूर्व कथा सुना चुका तो लड़की ने पूछ लिया, ‘‘परन्तु अब तो आप अपने पिता को पत्र लिखकर धनो-पार्जन करने की बात समझ गये होंगे?’’

‘‘हाँ! आज आधे भूमण्डल के लोग इसे ‘मिडिल मैन्ज़’ शोषण करना कहते हैं।

‘‘और आप भी यही समझते हैं?’’

‘‘मैं भूमण्डल के दूसरे आधे लोगों में से हूं।’’

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