उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘बहूत खूब! मैं तो कहने वाली थी कि आप अपने विषय में भी वैसे ही हीन विचार रखते हैं जैसे आधी दुनिया के लोग आपके पिता जैसों के विषय में कहते हैं।’’
‘‘जी नहीं! अब तो मैं पत्र लिखने को एक महान् उपकारी कार्य मानने वालों में हूं। मैंने एक पत्र एक समाचार-पत्र में प्रकाशित करवाया है और मैं समझता हूं कि उस पत्र ने एक मिलियन एन० आई० टी० की शक्ति का काम किया है। इस पत्र रूपी बम ने संसार के एक महान् डिक्टेटर का सिंहासन हिला दिया है।’’
‘‘तब तो आप एक महापुरुष हैं।’’
‘‘इसमें महानता कुछ भी नहीं। मेरे उस पत्र ने पैंतालीस करोड़ मानवों के भाग्य का, इस प्रकार किया जा रहा निर्णय बदल कर उनको अन्धकूप में गिरते-गिरते बचा लिया है। यह कार्य मैं करोड़ों रुपये मूल्य का समझता हूं।’’
‘मुझे राजनीति में रुचि नहीं। इस कारण मैं आपकी ‘लैटिन’ और ‘ग्रीक’ भाषा समझ नहीं सकी।’’
‘‘परन्तु आप भारतीय तो हैं।’’
‘‘हां! मैं ऐसा अनुभव करती हूं। इस पर भी राजनीतिज्ञों के विचार के अतिरिक्त भी कुछ क्षेत्र हैं जिनमें भारतीयता अनुभव की जा सकती है। मेरा क्षेत्र है भारत की प्राचीन प्रभुता। मैं इसके विश्लेषण में भी भारतीयता अनुभव करती हूं। इससे मुझे भारत में जन्म लेने पर गौरव अनुभव होता है और उस गौरव के कारण मैं अपनी जन्मभूमि से प्रेम अनुभव करती हूं।’’
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