उपन्यास >> आशा निराशा आशा निराशागुरुदत्त
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जीवन के दो पहलुओं पर आधारित यह रोचक उपन्यास...
‘‘डिमोक्रैट एक भ्रममूलक शब्द है। इसका प्रयोग सब तानाशाह अपने-अपने अर्थों में करते हैं। डिमोक्रैसी का एक सार होता है। जब डिमोक्रैसी में वह सार न रहे तो उसे तानाशाही कहा जाता है।
‘‘रूस में लेनिन का राज्य भी डिमोक्रैसी कहलाता था। स्टालिन अपने को डिमोक्रैट ही कहता था। चीन में भी शासन डिमोक्रैसी कहलाता है। इंग्लैंड तथा फ्रांस में भी डिमोक्रैसी है।
‘‘डिमोक्रैसी एक निरर्थक शब्द हो जाता है, यदि उसमें वह सार न रहे।’’
‘‘क्या सार है प्रजातन्त्र का?’’
‘वह है विचार स्वतन्त्रता। नेहरू मन से इसे पसन्द नहीं करते। उसने संसद, मन्त्रिमण्डल और राज्य विधान सभाएँ बनाई हुई हैं, परन्तु वह अपनी इच्छा के विपरीत, अपने परम से परम सम्मानित, आयु में बड़े और प्रिय मन्त्री को भी धक्के दे-देकर राज्यतन्त्र से बाहर निकाल सकता है।’’
‘‘मैं यद्यपि राजनीति में रुचि नहीं रखती, परन्तु मैं समाचारपत्र तो पढ़ती रहती हूं। प्रजातन्त्र शासन का अर्थ जो मैं समझी हूं, वह है जनता की सम्मति से शासन चलना और जनता की सम्मति से भारत में शासन चल रहा है।’’
‘‘नहीं देवी जी! प्रजा की सम्मति तो उस स्वतन्त्रता का एक अंग है जिसे मैंने अभी प्रजातन्त्र का सार बताया है। जब किसी प्रकार से बल-छल अथवा प्रलोभनों से प्रजा की सम्मति अपने अनुकूल की जाये तो वह प्रजा की स्वतन्त्र सम्मति नहीं होती और जहां यह नित्य होता हो, वह प्रजातन्त्र नहीं कहा जा सकता।
‘‘भारत में पण्डित नेहरू के समर्थन के लिए बल, छल और प्रलोभन, तीनों का प्रयोग किया जा रहा है। पण्डित जी धमकियां देना भी क्षम्य मानते हैं।’’
‘‘क्या धमकियां देते हैं?’’
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