उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
उमाशंकर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने अपने नाम बदल लिए हैं। कोठी का नाम नामपट्ट भी बदल दिया है। इसी कारण पत्र लौट आया है।’’
‘‘क्या नाम रख लिया है?’’
‘‘बहन तो प्रज्ञा ही है। अब सुना है कि जीजाजी ने अपना नाम ज्ञानस्वरूप रख लिया है, उनकी माताजी सरस्वती हो गई हैं और जीजाजी की बहन का नाम हो गया है कमला।’’
‘‘यह सब हमको धोखा देने के लिए किया जा रहा है?’’
‘‘किस बात का धोखा देने के लिए?’’ उमा का प्रश्न था।
‘‘यही कि वे हमारे सामने हिन्दू बन रहे हैं जिससे उनकी लड़की यहाँ इस ब्राह्मण परिवार में घुस आये।’’
‘‘नाम बदलने से इसका क्या सम्बन्ध हो सकता है? मैं तो नगीना के नाम से भी उससे विवाह करने को तैयार हूं। फिर नाम बदलने से मेरी राय में परिवर्तन नहीं हुआ।’’
‘‘परन्तु लोगों में तुम्हारी इज्ज़त बिगड़ सकती थी। अब हिन्दू लड़की का लबादा ओढ़ वह समझती है कि बिना रोक-टोक यहाँ आ सकेगी।’’
‘‘पिताजी! यदि यह कारण है नाम बदलने का तो उन्होंने मेरा घोर अपमान किया है। मैं इतना मूर्ख नहीं हूँ कि नाम सुन उसके विचार और मान्यताओं का अनुमान लगाने लगूँगा।’’
पूर्ण उद्धाटन समारोह में रविशंकर प्रसन्नता से भरा रहा था। अब भी वह पन्द्रह-बीस मिनट पूर्व अति प्रसन्न था, परन्तु ज्यों ही प्रज्ञा की बात आरम्भ हुई थी कि उसका मुख गम्भीर होने लगा था।
अब यह जान कि मुहम्मद यासीन के परिवार ने नाम बदल लिए हैं, वह और भी अधिक बेचैन हो उठा था।
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