उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
‘‘वह पके फल की तरह पेड़ से अलग हो चुका है। इस पर भी उस पेड़ की हर रोज कदम-बोसी करता है, जिससे वह अलग हुआ था।’’
‘‘यह सब बकवास है। सुनो, तुम सबको अपने साथ ले जाने के लिए आया हूँ।’’
‘‘किस-किसको?’’
‘‘सरवर, नगीना और यासीन को।’’
‘‘तो ले चलिए। मैं अपने पुत्र के साथ ही चलूँगी।’’
‘‘और खाविन्द के साथ नहीं?’’
‘‘ख़ुदा की कसम खाकर बताइए। कब से खाविन्द के ओहदे से इस्तीफा दे रहा है?’’
ख़ुदा की कसम की बात सुन अब्दुल हमीद कुछ कहता-कहता रुक गया। कुछ विचार कर उसने कहा, ‘‘खाविन्द तो अब भी मैं हूँ। मैंने तुम्हें तलाक नहीं दिया था।’’
‘‘मगर मैंने आपको तलाक दे रखा है।’’
‘‘कायदे कानून से यह नहीं हो सकता।’’
‘‘यह तो अदालत बतायेगी कि उसकी सरकार का कानून क्या कहता है। इसी वास्ते कि मैं अब मुसलमान नहीं रही। आपकी शरअ अब मुझ पर हावी नहीं हो सकेगी।’’
अब कमला ने कह दिया, ‘‘अब्बाजान! मैं बम्बई नहीं जा रही।’’
‘‘और यहाँ किसके पास रहोगी?’’
‘‘भाभी प्रज्ञा के पास।’
‘‘मगर यासीन जाएगा तो उसे भी चलना होगा।’’
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