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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...


‘‘कहीं, किसी आप जैसे भले मनुष्य के निमन्त्रण पर। परन्तु वहाँ से किसी वजह से बिना खाये ही लौटना पड़ा है।’’

‘‘तुम लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।’’ अब्दुल हमीद ने कह दिया।

‘‘मगर अब्बाजान! आपके साथ वैसा नहीं होगा। मैंने रसोईये को कह दिया है कि आपकी मन चाहती डिशेज़ बन जाएँ।’’

‘‘अच्छा! तुम बताओ मोहतरिमा...क्या नाम रख बैठी हो?’’

‘‘सरस्वती।’’ प्रज्ञा की सास ने कह दिया।

‘‘और सरवर नाम में क्या खराबी थी?’’

‘‘वह एक खाविन्द से छोड़ी हुई बीवी का नाम था।’’

‘‘ओह! तो अब सरस्वती को कोई नया खाविन्द मिल गया है?’’

‘‘हजरत, नहीं। कहते हुए सरस्वती गैर-शादीशुदा ही थी। उसका एक प्रिय था। वह था ज्ञान और यहाँ वह ज्ञान मेरा पुत्र है।’’

‘‘प्रिय का क्या मतलब?’’

‘‘अज़ीज, प्यारा और आँखों का तारा।’

‘‘और खाविन्द नहीं मिला?’’

‘‘सरस्वती के भाग्य में खाविन्द नहीं है।’’

‘‘तो क्या फायदा हुआ है?’’

‘‘फायदा हुआ है ज्ञानस्वरूप जैसे पुत्र।’’

‘‘वह तो हमने पैदा किया है।’’

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