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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

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अगले दिन मध्याह्नोपरान्त साढ़े बारह बजे रविशंकर अपने परिवार के साथ लड़की के घर आ गया। प्रज्ञा की माँ महादेवी, लड़की और लड़के के लिए एक-एक जोड़ा पोशाक और साथ में सोने की चार चूड़ियाँ तथा पाँच हजार रुपये लाई थीं। जब ये लोग आए तो अब्दुल हमीद का पूर्ण परिवार उनके स्वागत के लिए तैयार था। अब्दुल हमीद का सबसे छोटा लड़का रहमान अली इस समय पाँच वर्ष का था। वह भी सबके साथ अपने भाई की बीबी के माता-पिता तथा आनेवालों को देखने द्वार पर आ खड़ा हुआ था। परिचय वहाँ ही हो गया। परिचय के उपरान्त सब ड्राइंग-रूम में आ बैठे।

बैठते ही महादेवी ने हाथ में पकड़ी हुए कपड़ों की गठरी सब के सम्मुख सेण्टर टेबल पर रखी तो रविशंकर ने कह दिया, ‘‘लड़की के घर पहली बार आने के मौका पर हमारा कुछ देना बनता है। जल्दी-जल्दी में यही ला सके हैं। इसमें लड़की और लड़के के कपड़े हैं। लड़की के लिए पहनने की चूड़ियाँ है और फिर आप सबके लिए कुछ नकद है। आप परस्पर उचित ढंग से इसका प्रयोग कर लें।

अब्दुल हमीद ने देखे बिना उठा ले जाने के लिए नौकर रज्जाक को आवाज दे दी, परन्तु यासीन की माँ सरवर ने नौकर के आने से पहले ही गठरी को उठा माथे से लगाया और लेकर भीतर चली गई। अब्दुलगनी मुख देखता रह गया।

अब्दुल हमीद पहले तो अपनी बड़ी बेगम को मना करने लगा था, परन्तु जब तक वह विचार कर कुछ कहता, सरवर ड्राइंग-रूम से निकल गयी थी। इस कारण वह कुछ कहने से रुक गया। नौकर आया तो उसे कहना पड़ा, ‘‘कुछ नहीं, जाओ।’’

इसके उपरान्त अब्दुल हमीद यह बताने के लिए कि वह रविशंकर की भेंट की कुछ परवाह नहीं करता, बोल उठा, ‘‘गम कल दस जने बम्बई से हवाई जहाज में आये हैं और अढ़ाई हजार रुपये भाड़े पर खर्च हो गया है।’’

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