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उपन्यास >> नास्तिक

नास्तिक

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :433
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7596

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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...

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खाने के बाद नगीना अपना कैमरा ले आयी और सबके फोटो लेने लगी। उसने प्रज्ञा और उसके भाई के साथ परिवार के भिन्न-भिन्न सदस्यों के साथ चित्र लिये।

इसके उपरान्त ड्राइंग-रूम में बैठे हुए अब्दुल हमीद और रविशंकर बातें करने लगे। अब्दुल हमीद ने कहा, ‘‘आप लोग खालिस वैजिटेरियन मालूम होते हैं!’’

‘‘जी! हममें से कोई भी मांस खाने की जरूरत नहीं समझता। न तो जिस्मानी ताकत के लिए, न ही दिमागी ताकत के लिए।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि औलाद पैदा करने के लिए यह बहुत जबरदस्त मददगार है।’’

‘‘हम ज्यादा तादाद में औलाद के हक में नहीं हैं। हम औलाद के अच्छे और साफ होने की ज्यादा फिक्र करते हैं।’’

‘‘मगर आजकल तो जमहूरियत का जमाना है। तादाद का सब मामलों में बहुत असर होती है।’’

‘‘मैं जमहूरियत को जहालत समझता हूँ। यह कुछ अर्सा के लिए चल सकती है, मगर आखिर में यह फेल होगी।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘सिर्फ इसलिए कि इन्सानों में भी ज्यादा तादाद में लोग हैवानी वसफ (स्वभाव) रखते हैं और हैवान कुछ अर्सा के लिए ही जबरदस्त हो सकते हैं, मगर आखिर में दानिशमन्दों (बुद्धिमानों) की ही फतह होती है।’’

‘‘मगर अब तो सब दुनिया में इसका रिवाज हो रहा है और जिस कौम में तादाद ज्यादा होगी, वह कौम हुकूमत करेगी।’’

‘‘हमारी फिलोसोफी इससे उलट है। एक अक्लमन्द हजार जाहिलों पर हावी होती है।’’

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