उपन्यास >> नास्तिक नास्तिकगुरुदत्त
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खुद को आस्तिक समझने वाले कितने नास्तिक हैं यह इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से दर्शाया गया है...
अब्दुल हमीद ने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘एक से ज्यादा बीवियाँ रखने में एक लुफ्त यह है कि बीवियाँ मातहत रहती हैं। हाँ, मगर यह तब ही हो सकता है, जब खाविन्द को एक से ज्यादा बीवियाँ रखने की और फिर उन्हें तलाक देने की इजाजत हो और बीवी को न तलाक देने की इजाजत हो, न एक से अधिक खाविन्द रखने की।’’
‘‘यह हमारे समाज में ठीक नहीं समझा जाता। हम औरत-मर्द के बराबर हक-हकूक चाहते हैं।’’
‘‘मगर हिन्दुओं में भी तो आदमी एक से ज्यादा शादी कर सकते हैं?’’
‘‘अब यह रिवाज नहीं रहा। एक आदमी कानून से एक ही बीवी रख सकता है। जब एक से ज्यादा बीवियाँ रखने की इजाजत थी, तब औरतों को गुजारा देने का रिवाज भी था। वह खाविन्द के पास न रहती हुई गुजारा माँग सकती थी। अब कानून बदल गया है।’’
‘‘और इस बदलते कानून से आपका हिन्दू मजहब कमजोर नहीं हुआ क्या?’’
‘‘इसका मजहब, जिसे हम धर्म कहते हैं, से कोई ताल्लुक नहीं। धर्म विवाह करने, न करने से कोई ताल्लुक नहीं रखता।
‘‘विवाह की रस्म, रिवाज के साथ सम्बन्ध रखती है और रिवाज वक्त-वक्त पर बदलता रहता है। धर्म है औलाद पैदा करना। चाहे किसी भी रस्म से शादी हुई हो, औलाद पैदा करना धर्म है।
‘‘रस्म जमाने के साथ बदलती रहती है। जब एक हिन्दू एक से अधिक बीवियाँ रख सकता था, तब भी औलाद पैदा करता था और अब सिर्फ एक से शादी कर सकता है, तब भी औलाद पैदा करता है।’’
अब्दुल हमीद को यह बात भी समझ नहीं आई। वह तो समझा था कि यदि चार के बजाए एक बीवी रखने का कानून हो जाये तो इस्लाम नहीं रहेगा, क्योंकि हजरत मोहम्मद ने चार तक रखने के लिए कहा है। जब रविशंकर ने यह बताया कि इन रस्मों से धर्म अलहदा है तो वह समझ नहीं सका और बात बदलने पर मजबूर हो गया। उसने पूछ लिया, ‘‘अब आप अपनी लड़की को क्या समझते हैं, वह हिन्दू हैं या मुसलमान?’’
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